क्या देश में दलितों के हालात बदले हैं? यदि कोई यह तर्क देता है कि अब दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार नहीं होता है तो कर्नाटक की एक घटना और इस पर अदालत का फ़ैसला और उसकी टिप्पणी उसे ज़रूर पढ़नी चाहिए। कर्नाटक की एक जिला अदालत ने गुरुवार को 10 साल पुराने एक मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत 101 लोगों को दोषी ठहराया है। इसने 98 लोगों को आजीवन कारावास और बाकी दोषियों को पांच साल की सजा सुनाई है।
अदालत का यह फ़ैसला उस मामले में आया है जिसमें 29 अगस्त 2014 को कोप्पल जिले के मरुकंबी गांव में तीन दलित घरों में आग लगा दी गई थी। जाति-संबंधी हिंसा में 30 से अधिक लोग घायल हो गए थे। दलित पुरुषों और महिलाओं को उनके घरों से घसीटकर बाहर निकाला गया और उन पर हमला किया गया था। तब इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था।
पुलिस ने आरोपपत्र में 117 लोगों के नाम दर्ज किए थे। अदालत ने 101 लोगों को दोषी ठहराया। मुकदमे के दौरान ग्यारह आरोपियों की मौत हो गई थी। सजा सुनाते हुए न्यायाधीश सी. चंद्र शेखर ने कहा, 'यह मामला सामान्य भीड़ हिंसा के बजाय जातिगत हिंसा का मामला लगता है।'
फ़ैसले में अदालत ने दलितों की दयनीय स्थिति का ज़िक्र किया और कहा कि भले ही उनकी स्थिति बेहतर करने के जितने भी प्रयास किए गए, लेकिन उनके ख़िलाफ़ हिंसा और उत्पीड़न नहीं बंद हुआ है। अदालत ने कहा, 'अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिए विभिन्न उपायों के बावजूद वे कमज़ोर बने हुए हैं और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इसके अलावा उन्हें विभिन्न अपराधों, अपमानों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मुझे रिकॉर्ड पर कोई भी ऐसी परिस्थितियाँ नहीं मिलीं, जो किसी भी तरह की नरमी दिखाने का औचित्य साबित करती हों। इस तरह के मामले में दया दिखाना न्याय का मखौल होगा।'
हालाँकि, अदालत ने आरोपियों की ग़रीबी को देखते हुए मानवीय पक्ष को ज़रूर ध्यान में रखा। बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि अदालत ने उनकी दलील स्वीकार कर ली है और दोषियों में से ज़्यादातर गरीब किसान हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए भारी जुर्माना नहीं लगाया है।
बता दें कि कोप्पल जिला कर्नाटक के पिछड़े जिलों में से एक है और यहाँ पहले भी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध की खबरें आती रही हैं। यह वही जिला है, जहाँ तीन साल के दलित बच्चे के मंदिर में प्रवेश करने पर उसके पिता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
वैसे, दलितों की ऐसी स्थिति सिर्फ़ कर्नाटक में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में है। जब तब देश के अलग-अलग हिस्सों से और दलितों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न के अजीबोगरीब मामले आते रहे हैं। कभी मंदिर में प्रवेश करने के लिए 'सजा' दे दी जाती है तो कभी मूँछें रखने के लिए। कभी शादी में घोड़ी पर चढ़ने के लिए तो कभी पानी को छू देने भर के लिए। चोरी के आरोप में रस्सियों से हाथ पैर बांधकर पिटाई करने, सिर मुंडवाने जैसी घटनाएँ भी आती रही हैं।
एक चर्चित मामला राजस्थान का था। 2022 के अगस्त महीने में 9 साल के एक दलित छात्र को इसलिए पीटकर मार डाला गया था कि उसने उस मटके से पानी पी लिया था जो कथित तौर पर शिक्षक के लिए अलग रखा गया था। आरोपी शिक्षक को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
उसी साल यूपी के रायबरेली में एक दलित उत्पीड़न का मामला आया था। तब वायरल हुए एक वीडियो में दिखा था कि कुछ युवक दलित युवक की पिटाई कर रहे थे। वीडियो में दिखा था कि युवक हाथ जोड़े खड़ा था और एक युवक उसे बेल्ट जैसी किसी चीज से पिट रहा था। पीड़ित जमीन पर दोनों हाथों से कान पकड़े हुए बैठा था। आरोपी मोटरसाइकिल पर बैठा हुआ दिखा था। पीड़ित जमीन पर डर के मारे कांप रहा था। और फिर मोटरसाइकिल पर बैठा आरोपी पीड़ित को पैर चाटने के लिए मजबूर किया था।
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