लंबे वक़्त तक सियासी ख़ालीपन से गुज़रे जम्मू कश्मीर में क्या अब राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो गई है? यह सवाल इसलिए कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस के प्रमुख फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी के कई नेताओं से गुरुवार को मुलाक़ात की है। वह आज भी अपने दल के कुछ अन्य नेताओं से मिल रहे हैं और उन्होंने कहा है कि वह जल्द ही राज्य में मुख्यधारा के राजनीतिक दलों की सर्वदलीय बैठक भी बुलाएँगे। पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बाँटकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने और तब से नेताओं को हिरासत में रखे जाने बाद यह पहली बार है कि मुख्यधारा की इस पार्टी के नेताओं की बैठक हुई है। तो क्या ये ताज़ा गतिविधियाँ राजनीतिक प्रक्रिया के लिए 'जादुई छड़ी' है जो सब ठीक कर देगी?
हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से भी तब राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के संकेत मिले जब जम्मू-कश्मीर में लेफ़्टिनेंट गवर्नर पद पर एक नौकरशाह जीसी मुर्मू की जगह राजनीतिक नेता मनोज सिन्हा की नियुक्ति की गई। हाल के दिनों में सरकार ने कई नेताओं को हिरासत से रिहा किया है, सुरक्षा बलों की तैनाती को कम करने का फ़ैसल लिया है और 4जी इंटरनेट को सुचारू करने की प्रक्रिया भी शुरू की है। हालाँकि पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती सहित कई नेता अभी हिरासत में हैं। माना जा रहा है कि राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने का मतलब है कि अब हिरासत में बंद नेताओं को रिहा किया जाएगा।
हालाँकि नेताओं के हिरासत में रहने को लेकर विवाद भी होता रहा है। नेशनल कॉन्फ़्रेंस की ओर से कहा जा रहा था कि उसके नेताओं को नज़रबंद रखा गया है। यह मामला हाई कोर्ट में पहुँचा। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाई कोर्ट से कहा कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस का कोई भी नेता नज़रबंद नहीं है, उसी बीच गुरुवार को फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने गुपकर रोड स्थित अपने आवास पर पार्टी के कुछ नेताओं के साथ बैठक की। बैठक में एनसी के महासचिव अली मोहम्मद सागर, प्रांतीय अध्यक्ष नासिर असलम वानी, पूर्व मंत्री अब्दुल रहीम राथर, और मुहम्मद शफी उरी शामिल थे।
फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि 'हमने एक प्रक्रिया शुरू की है और हम इसे जारी रखेंगे।' उन्होंने कहा कि जल्द ही सर्वदलीय बैठक बुलाई जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि बैठक 'गुपकर घोषणा' को लेकर होगी जो हमारा कोर इश्यू है।
बता दें कि पिछले साल 5 अगस्त को प्रतिबंध लगने से पहले 4 अगस्त को मुध्यधारा की राजनीतिक पार्टियाँ गुपकर रोड स्थिति उनके इसी आवास पर मिली थीं और 'गुपकर घोषणा' जारी की थी। इसमें सभी दलों ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की रक्षा के लिए एकजुट होने का संकल्प लिया था।
फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने गुरुवार को कहा कि वह लगातार पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती के संपर्क में हैं। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि महबूबा आज़ाद हों और उनके लिए यह एक बड़ा दिन होगा।
इस बैठक के बाद ऐसा लगता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला को भी राजनीतिक प्रक्रिया अब जारी रहने की उम्मीद है लेकिन वह सशंकित भी हैं। उनकी यह आशंका नज़रबंद नेताओं को लेकर है और उन नेताओं को लेकर भी जिन्हें हिरासत से छोड़ा तो जा रहा रहा है लेकिन फिर पाबंदी भी लगाई जा रही है। इसीलिए अब्दुल्ला ने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि यहाँ मौजूद नेता अब स्वतंत्र होंगे, ऐसा न हो कि उन्हें एक दिन के लिए बाहर निकलने की अनुमति दी जाए और फिर उन पर पाबंदी लगा दी जाए। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम और पार्टी सदस्यों से मिलते रहेंगे, इसलिए हम केंद्र शासित प्रदेश और उसके लोगों के विकास पर चर्चा करेंगे।'
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने की तब और उम्मीद बँधी जब केंद्र सरकार ने वहाँ से जुड़े एक के बाद एक कई फ़ैसले लिए।
केंद्र सरकार ने 19 अगस्त को ही केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर से अर्द्धसैनिक बलों के क़रीब 10,000 जवानों की तत्काल वापसी का आदेश दिया है। केंद्र की ओर से पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव करने, जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद एहतियात के तौर जवानों को तैनात किया गया था। इससे पहले क़रीब साल भर से बंद 4जी इंटरनेट को बहाल करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
लेकिन इस राजनीतिक प्रक्रिया की वास्तविक शुरुआत तब हुई जब जीसी मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर के लेफ़्टिनेंट गवर्नर पद से इस्तीफ़ा दे दिया और इसके साथ ही बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को नया लेफ़्टिनेंट गवर्नर नियुक्त कर दिया गया।
लेकिन अब चूँकि राजनीतिक प्रक्रिया एक तरह से शुरू हो गई है तो क्या सबकुछ अब ठीक हो जाएगा? क्या यह एक जादुई छड़ी साबित होगी? इसमें कई बड़ी चुनौतियाँ हैं। पहले तो यही कि अभी भी कई नेता नज़रबंद हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी शामिल हैं। उन्हें एनएसए के तहत बंद किया गया है और हाल ही में उनकी हिरासत अवधि तीन महीने के लिए बढ़ाई गई है। मुख्यधारा के ऐसे नेताओं को हिरासत में रखकर क्या यह राजनीति प्रक्रिया सफल हो पाएगी? यदि मान भी लिया जाए कि महबूबा मुफ़्ती और दूसरे नेताओं को सरकार रिहा कर देती है तो भी क्या इतना आसान होगा?
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