जम्मू और कश्मीर से छीन लिए गए विशेष संवैधानिक दर्जे (स्टेटहुड) को बहाल करने के लिए कश्मीर के मुख्यधारा के नेताओं की प्रतिबद्धता केवल ज़बानी जमा खर्च साबित हो रही है। पिछले साल 4 अगस्त को, जब भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए पर खतरे के बादल मंडरा रहे थे, तब नेशनल कॉन्फ्रेन्स के नेता फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने श्रीनगर के गुप्कर रोड स्थित अपने आवास पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। बैठक में इन संवैधानिक प्रावधानों को बनाए रखने का संकल्प लिया गया था।
क्या मोदी सरकार को कश्मीर के मुख्य राजनीतिक दलों का मौन समर्थन हासिल है?
- जम्मू-कश्मीर
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- 19 Sep, 2020

यह देखा जाना बाक़ी है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर नई दिल्ली द्वारा उठाए गए कदम पर क्या मुख्यधारा के राजनीतिक दल वास्तव में इसके ख़िलाफ़ एक व्यावहारिक प्रयास करेंगे या नई दिल्ली के फ़ैसलों के पूर्ण कार्यान्वयन में जाने-अनजाने में अपना योगदान देंगे। इन राजनीतिक दलों की रहस्यमय चुप्पी को कुछ लोगों द्वारा केंद्र की मोदी सरकार को उनके गुप्त समर्थन के रूप में भी देखा जा रहा है।
बैठक में गुप्कर घोषणा के नाम से पारित प्रस्ताव पर फ़ारूक़ अब्दुल्ला, पीडीपी की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस नेता ताज मोहिउद्दीन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एम) के नेता मुहम्मद यूसुफ तारिगामी, जम्मू एंड कश्मीर पॉलिटिकल मोमेंट के शाह फैसल और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेन्स के नेता मुजफ्फर शाह ने हस्ताक्षर किए थे।
लेकिन इसके ठीक एक दिन बाद, नई दिल्ली ने संसद में एक विधेयक पारित किया जिसे जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम कहा गया, जिसमें दोनों संवैधानिक प्रावधानों को रद्द कर दिया गया और एक झटके में राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया।