गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ महीने पहले इस आरोप का खंडन किया था कि मोदी सरकार जम्मू और कश्मीर की जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश कर रही है।
परिसीमन, अधिवास प्रमाण पत्रों की वजह से केंद्र-जम्मू कश्मीर के बीच बढ़ रही दूरियाँ
- जम्मू-कश्मीर
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- 4 Sep, 2020

जम्मू और कश्मीर में आखिरी बार परिसीमन 1995 में किया गया था। यह परिसीमन जम्मू और कश्मीर के अपने संविधान और कानूनों के अनुसार किया गया था। उसके बाद, सरकार ने फ़ैसला किया था कि 2026 तक कोई नया परिसीमन नहीं होगा। लेकिन केंद्र सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ करते हुए अब यहां नया परिसीमन स्थापित करना शुरू कर दिया है। वास्तव में, बीजेपी शुरू से कहती रही है कि मुसलिम-बहुल घाटी में हिंदू-बहुल जम्मू की तुलना में अधिक सीटें हैं, इसलिए इसे ठीक करने की आवश्यकता है।
लेकिन कश्मीर घाटी में एक मजबूत धारणा है कि नई दिल्ली जम्मू और कश्मीर को अस्थिर करने के मिशन पर है। यह डर केवल आम आदमी को ही नहीं बल्कि कई क्षेत्रीय दलों जैसे नेशनल कॉन्फ्रेन्स, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपुल्स कॉन्फ्रेन्स और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेन्स को भी है जो लगातार आरोप लगा रहे हैं कि नई दिल्ली जम्मू और कश्मीर के जनसांख्यिकी को बदल रही है।
‘दिल्ली से हो रहे हैं फ़ैसले’
राजनीतिक पर्यवेक्षक ऐसी चिंताओं को सही ठहरा रहे हैं। कश्मीर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर नूर अहमद बाबा ने ‘सत्य हिंदी’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "लोगों का डर निराधार नहीं है। क्योंकि 5 अगस्त, 2019 से अब तक नई दिल्ली की ओर से जो निर्णय लिए जा रहे हैं, वे एकतरफा हैं। यहां कोई चुनी हुई सरकार नहीं है। हर निर्णय दिल्ली में लिया जा रहा है। यहां के प्रमुख राजनीतिक दलों से कोई राय नहीं मांगी जा रही है। इस स्थिति ने यहां के लोगों के दिलों में डर पैदा कर दिया है। उन्होंने नई दिल्ली पर विश्वास खो दिया है। केंद्र सरकार द्वारा कश्मीरियों की इन चिंताओं को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।”