जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने विधानसभा में जम्मू क्षेत्र के लिए 43 और कश्मीर घाटी के लिए 47 सीटें रखने की सलाह दी है। इसके अलावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीटें छोड़ने के लिए कहा गया है। इसका असर यह हुआ कि अतिरिक्त सात में से छह सीटें जम्मू और कश्मीर को सिर्फ एक सीट दी गई है। घाटी के राजनीतिक दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया है।
सोमवार को हुई बैठक में इस मसौदा प्रस्ताव पर बातचीत हुई। इसके साथ ही अनुसूचित जाति के लिए सात और अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें छोड़ने को कहा गया है।
आयोग ने इस बैठक में कई सांसदों व नेताओं को बुलाया और उनसे बातचीत की। इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के फ़ारूक़ अब्दुल्ला, एम. अकबर लोन और हसनैन मसूदी थे। इसके अलावा बीजेपी के जीतेंद्र सिंह और जुगल किशोर शर्मा को भी बैठक में न्योता गया था।
ये सभी आयोग के सहायक सदस्य हैं। आयोग ने इनसे यह भी कहा कि वे अपने सुझाव इस महीने के अंत तक लिखित में आयोग को दें।
फ़ारूक़ ने किया खारिज
जीतेंद्र सिंह ने पत्रकारों से कहा कि परिसीमन आयोग ने सभी पक्षों की बातों को ध्यान में रख कर और गंभीर अध्ययन करने के बाद यह प्रस्ताव तैयार किया है। उन्होंने कहा कि नेशनल कॉन्फेंस के सदस्यों ने इस मसौदा प्रस्ताव की तारीफ की है।
लेकिन इस दावे के उलट नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने परिसीमन आयोग के मसौदे को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का मसौदा प्रस्ताव अस्वीकार्य है। नए बनाए गए छह विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ एक कश्मीर घाटी को दिया जाना 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुकूल नहीं है।"
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यह निराशानजक है कि आँकड़ों पर विचार करने के बाद सिफारिश करने के बजाय परिसीमन आयोग ने बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे को लागू किया है।
फ़ारूक़ अब्दुल्ला, नेता, नेशनल कॉन्फ्रेंस
पीडीपी की आशंका
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी इसका विरोध किया है। उन्होंने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, "परिसीमन आयोग को लेकर हमारी आशंकाएं सही साबित हुईं। उन्होंने लोगों को एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया है।"
मुफ़्ती ने कहा,
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परिसीमन आयोग का असली मक़सद जम्मू-कश्मीर में एक ऐसी सरकार को स्थापित करना है जो अगस्त 2019 के ग़ैरक़ानूनी व असंवैधानिक फ़ैसलों को वैधता प्रदान करे।
महबूबा मुफ़्ती, नेता, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी
बता दें कि 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन कर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया गया। इसके साथ ही अनुच्छेद 36 'ए' को ख़त्म कर दिया गया।
अपनी पार्टी ने क्या कहा?
जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी ने भी परिसीमन आयोग के मसौदा प्रस्ताव को नकार दिया है। पार्टी ने कहा, "यह हमें एकदम स्वीकार नहीं है। अपनी पार्टी बगैर किसी पूर्वाग्रह के परिसीमन का काम चाहती है, वह चाहती है कि ज़िला और जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया जाए।"
अपनी पार्टी ने कहा कि 'हम भारत सरकार के हस्तक्षेप की कड़ी निंदा करते हैं।'
क्या होता है परिसीमन?
बता दें कि परिसीमन के काम के तहत जनसंख्या के आधार पर विधानसभा या लोकसभा क्षेत्रों की सीमा का पुर्निधारण किया जाता है। यह काम परिसीमन आयोग करता है, जिसके फ़ैसले क़ानूनी रूप से बाध्य होते हैं और उन्हें अदालत में चुनौती नहीं दिया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने 6 मार्च, 2020 को परिसीमन आयोग का गठन किया और सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया।
चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर चुनाव राज्य चुनाव आयुक्त के. के. शर्मा इसके पदेन सदस्य हैं। इसके अलावा पाँच राजनेता इसके सहायक सदस्य हैं। ये हैं- फ़ारूक़ अब्दुल्ला, मुहम्मद अकबर लोन, हसनैन मसूदी, जीतेंद्र सिंह और जुगल किशोर शर्मा।
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