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दो महीनों में कितना बदला जम्मू-कश्मीर?

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि बीते 60 दिनों से नज़रबंद या जेल में बंद सभी राजनेताओं को जल्द ही एक-एक कर छोड़ दिया जाएगा। इसके एक दिन पहले ही तकरीबन एक दर्जन नेताओं की नज़रबंदी हटा ली गई और उनसे कहा गया कि वे अपने घर से बाहर जहाँ चाहें जा सकते हैं। क्या इसे राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने का संकेत माना जा सकता है? 
राज्य प्रशासन ने 2 अक्टूबर को एलान किया कि सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया है, जिन्हें नज़रबंद रखा गया था, उनके घरों के सामने से सुरक्षा बलों को हटा लिया गया है। यह सच है कि जम्मू के कई नेताओं की नज़रबंदी ख़त्म कर दी गई है। इनमें कांग्रेस के रमन भल्ला, विकार रसूल, नेशनल कॉनफ्रेंस के सज्जाद अहमद किचलू, सुरजीत सिंह सलाठिया, पैंथर्स पार्टी के हर्षदेव सिंह प्रमुख हैं। 
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जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करते समय लगभग 400 राजनेताओं को ग़िरफ़्तार किया गया था या उन्हें नज़रबंद कर दिया गया था। इनमें से बड़ी तादाद में लोग अभी भी नज़रबंद ही हैं।

नज़रबंद हैं 3 पूर्व मुख्य मंत्री!

राज्य के तीन पूर्व मुख्य मंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और नए राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर पीपल्स फ्रंट के नेता शाह फ़ैसल प्रमुख हैं। समझा जाता है कि अभी भी तकरीबन 250 राजनेता अलग-अलग जेलों में हैं या अपने-अपने घरों में नज़रबंद हैं। 
स्थिति सामान्य होने के केंद्र सरकार के दावे के बावजूद राज्य का जनजीवन सामान्य नहीं हुआ है। राजनीतिक पहल अभी भी शुरू नहीं हुई है, एक तरह का राजनीतिक शून्य बना हुआ है। 

स्कूल खुले, छात्र नदारद

लगभग दो महीने बाद 1 अक्टूबर को राज्य के स्कूल खुले, शिक्षक और दूसरे कर्मचारी काम पर भी गए। पर छात्र स्कूल नहीं गए। 

कश्मीर के डिवीजनल कमिश्नर बसीर अहमद ख़ान ने सभी डिप्टी कमिश्नरों को चिट्ठी लिख कर कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी स्कूल खुलें और बच्चों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि जितने समय स्कूल बंद रहे, स्कूल फ़ीस और बस फ़ीस न ली जाए। सभी स्कूलों से पीटीएम यानी पैरेंट-टीचर मीटिंग कराने को कहा गया है। 
जम्मू-कश्मीर के तमाम कॉलेज 9 अक्टूबर को खुलेंगे। डिवीजनल कमिश्नर को लिखी गई चिट्ठी में यह भी कहा है कि वे कॉलेज खुलने से जुड़ी तमाम तैयारियाँ पूरी कर लें। 

144 नाबालिग हिरासत में 

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के 4-सदस्यीय जुवेनाइल जस्टिस कमिटी ने कहा है कि 5 अगस्त से 23 सितंबर के बीच राज्य में 18 साल की उम्र तक के 144 नाबालिगों को हिरासत में लिया गया। इनमें से 142 नाबालिगों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। इस समिति में ए. एम. मगरे, डी. एस. ठाकुर, संजीव कुमार और रशीद अली डार हैं। 

जिन बच्चों को हिरासत में लिया गया, उनकी उम्र 9 से 18 साल तक थी। इनमें से 86 बच्चों को प्रीवेन्टिव डीटेंशन और क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत पकड़ा गया। इनमें से ज़्यादातर बच्चों को पत्थर फेंकते हुए पकड़ा गया।
इसमें एक 9 साल के एक बच्चे और 11 साल के एक दूसरे बच्चे को बटमालू में 7 अगस्त को पकड़ा गया। समझा जाता है कि इन नाबालिगों को पुलवामा, पाम्पोर, अवंतिपोरा, ख्रू, पारिम्पोरा, बडगाम, सद्दर, शौरा, बटमालू, सोपोर और दूसरी जगहों से हिरासत में लिया गया। पुलिस का कहना है कि सोपोर, बोमेरी, राजबाग, पुलवामा में बच्चों ने ज़ोरदार पत्थरबाजी की और दंगे किए, यानी मारपीट की। इन बच्चों को श्रीनगर और आरएस पोरा के बाल सुधार गृहों में रखा गया था। 

आतंकवादी हमले

सुरक्षा बलों ने कश्मीर के किश्तवाड़ से 2 अक्टूबर को 4 कथित आतंकवादियों को गिरफ़्तार कर लिया है। उनका दावा है कि ये लोग किसी बड़ी आतंकवादी कार्रवाई को अंजाम देने की कोशिश में थे। 

इसके पहले शनिवार को रामबन ज़िले के बटोटे में सुरक्षा बलों के साथ गोलीबारी में 3 आतंकवादी मारे गए, सुरक्षा बलों का एक जवान भी इसमें मारा गया। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो जवान बुरी तरह ज़ख़्मी हो गये।

रामबन

जम्मू-कश्मीर में रामबन ज़िले के बटोटे में आतंकवादियों ने पहले सुरक्षा बलों पर ग्रेनेड से हमला किया, उसके बाद एक घर में घुस गए और एक नागरिक को बंधक बना लिया है। राइफलों और हथगोलों से लैस कम से कम 5 आतंकवादियों ने टेरीटेरोयिल आर्मी के गश्ती दल को निशाना बनाया, पर उसके तुरन्त बाद वे एक घर में घुस गए और वहाँ मौजूद सभी लोगों को बंधक बना दिया। उन्होंने बाद में घर के प्रमुख विजय कुमार के अलावा सभी लोगों को छोड़ दिया। बाद में सुरक्षा बलों ने सभी जोरदार हमला किया, जिसमें गोलीबारी हुई।
नियंत्रण रेखा से सटे गुरेज़ के पास के गंदरबल इलाक़े में एक और मुठभेड़ हुई, जिसमें एक आतंकवादी मारा गया। एक दूसरी वारदात में आतंकवादियों ने एक यात्री बस को रोकने की कोशिश की। पर ड्राइर ने ख़तरे को भाँप लिया और रफ़्तार तेज़ कर गाड़ी भगा ले गया।

सोपोर

इस वारदात के कुछ ही दिन पहले 6 सितंबर को सोपोर के डांगरपोरा में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने स्थानीय लोगों पर बग़ैर किसी उकसावे के गोलियाँ चलाईं। 

सोपोर में आतंकवादियों की गोलीबारी में चार लोग बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। इसमें ढाई साल की बच्ची उस्मा जान भी थी।

त्राल

6 अगस्त को दक्षिण कश्मीर के त्राल में जैश-ए-मुहम्मद के आतंकवादियों ने घुमंतू बकरवाल समुदाय के दो लोगों का अपहरण कर उन्हें मार डाला। मारे गए लोगों के नाम हैं अब्दुल क़ादिर कोहली और मंजूर अहमद कोहली। अब्दु का शव लिचीनाग और मंज़ूर का शव लाची टॉप बहक इलाक़े के जंगल में पाई गई थीं। 

बारामुला

20 अगस्त को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने बारामुला में आतंकी हमला किया। इसमें एक सब इंस्पेक्टर और एक स्पेशल पुलिस ऑफ़िसर मारे गए थे। इसमें एक आतंकवादी भी मारा गया था। 

राजनीतिक पहल?

जम्मू-कश्मीर चुनाव आयोग ने कहा है कि 310 ब्लॉक डेवलपमेंट कौंसिल के चुनाव 24 अक्टूबर को कराए जाएँगे। लेकिन राज्य सरकार ने इसके अलावा कोई दूसरी राजनीतिक पहल नहीं की है। न तो नेशनल कॉन्फ्रेंस और न ही पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट से बात शुरू करने की कोशिश की जा रही है, इनके बड़े नेता अब भी जेल मे हैं। 

अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कश्मीर पर जो पहल की थी, उसके तहत उन्होंने आतंकवादियों से बात तक शुरू करवाई थी। मौजूदा सरकार से यह उम्मीद तो नहीं की जा सकती, पर वह मुख्यधारा के राजनेताओं से तो बात कर ही सकती है, जिसकी फिलहाल कोई शुरुआत नहीं हुई है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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