इस देश की अर्थव्यवस्था या आर्थिक प्रबंधन पर सवालिया निशान खड़े होना स्वाभाविक है, जहाँ एक ओर प्याज जैसी मामूली चीज खरीददारों को आँसू निकाल रही है तो दूसरी ओर सोने जैसी बहुमूल्य चीज की चमक फीकी पड़ गई है। यह विरोधाभास और विडंबना सरकार की आर्थिक नीतियों की पोल तो खोलती ही है, बाज़ारवादी अर्थव्यवस्था के खोखलेपन को भी उजागर करती है।