अगर आप बेरोज़गार हैं तो क्या निकट भविष्य में आपको रोज़गार मिल सकता है? यह वह सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। बेरोज़गारी एक बहुत बड़ी समस्या बन कर उभरी है। और ऐसे में जल्दी ही किसी बेरोज़गार को नौकरी मिल जायेगी, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है। बेरोज़गारी के जो नये आँकडे आये हैं वह और भी बड़े संकट की ओर इशारा कर रहे हैं। लॉकडाउन ख़त्म होने और अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के शुरुआती संकेत मिलने के बावजूद दिसंबर में बेरोज़गारी की दर पिछले छह महीनों में सबसे ऊपर दर्ज की गई।
सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर में राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर 9.06 प्रतिशत पर पहुँच गई। यह नवंबर में 6.51 प्रतिशत थी। इसी तरह ग्रामीण बेरोज़गारी दिसंबर में 9.15 प्रतिशत पर थी, यह नवंबर में 6.26 प्रतिशत पर थी।
बेरोज़गारी दर 9 प्रतिशत के ऊपर
राष्ट्रीय और ग्रामीण बेरोज़गारी की ये दरें जुलाई से अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। जून 2020 में बेरोज़गारी की राष्ट्रीय दर 10.18 प्रतिशत और ग्रामीण बेरोज़गारी 9.49 प्रतिशत थी।
दिलचस्प बात यह है कि जिस समय ग्रामीण और राष्ट्रीय बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है, शहरी बेरोज़गारी में कमी आई है। यह 8.84 प्रतिशत आंकी गई है।
बेरोज़गारी के इन आकड़ों से यह साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था भले ही कोरोना और उस वजह से हुए लॉकडाउन से उबरने लगी हो, रोज़गार के नए मौके नहीं बन रहे हैं।
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रोज़गार के मौके
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बेरोज़गारी की स्थिति में सुधार नहीं होने की वजह से केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ सकता है और वह इसके लिए उपाय कर सकती है। यह मुमकिन है कि केंद्र सरकार ढाँचागत सुविधाओं के विकास पर ध्यान दे, ग्रामीण रोज़गार स्कीम लाए और दूसरे क्षेत्र में कोई कदम उठाए ताकि रोज़गार के अवसरों का सृजन हो।
महात्मा गांधी नेशनल रूरल इंप्लायमेंट गारंटी एक्ट यानी मनरेगा के तहत बेहतर काम हुआ है। नवंबर में मनरेगा के तहत 23.60 करोड़ कार्य दिवस तो दिसंबर में 18.8 करोड़ कार्य दिवस का सृजन हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि लगभग 4.8 करोड़ कम कार्य दिवस बने हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि मनरेगा पर ज़ोर देने और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों काम देने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। ऐसा होने पर एमएसएमई यानी सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्यमों में मजबूती आएगी, वहां रोज़गार के मौके बनेंगे।
फ़िलहाल यह क्षेत्र संकट में है और नकदी न होने की वजह से अपनी क्षमता से कम काम कर रहा है, जिससे रोज़गार का संकट पैदा हो गया है।
लॉकडाउन का असर
बता दें कि लॉकडाउन से पहले 15 मार्च वाले सप्ताह में जहाँ बेरोज़गारी दर 6.74 फ़ीसदी थी वह तीन मई को ख़त्म हुए सप्ताह में बढ़कर 27.11 फ़ीसदी हो गई । सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई ने यह आँकड़ा दिया था । हालाँकि पूरे अप्रैल महीने में बेरोज़गारी दर 23.52 फ़ीसदी रही जो मार्च महीने में 8.74 फ़ीसदी रही थी।
रिपोर्ट के अनुसार तीन मई को ख़त्म हुए सप्ताह में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर जहाँ 26.16 फ़ीसदी रही वहीं शहरी क्षेत्रों में यह दर 29.22 फ़ीसदी रही। इससे पहले 26 अप्रैल को ख़त्म हुए सप्ताह में यह दर ग्रामीण क्षेत्रों में 20.88 फ़ीसदी और शहरी क्षेत्रों में 21.45 फ़ीसदी थी।
कुछ युवाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर को बेरोज़गारी दिवस के रूप में मनाया। लोग दिन भर रोज़गार की मांग को लेकर ट्वीट करते रहे और वीडियो भी जारी करते रहे। शाम 5 बजे इन्होंने 17 मिनट तक दीये और मोमबत्ती जलाकर ग़ुस्से का इजहार किया।
गुस्से का इज़हार
बेरोज़गारों और युवा कांग्रेस ने मिलकर ट्विटर पर #National_Unemployment_Day, #राष्ट्रीय_बेरोजगारी_दिवस, #17Baje17Minute ट्रेंड कराया और इन पर लाखों ट्वीट किए। दिल्ली, उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर बेरोज़गारों को पुलिस के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा।
इसी तरह युवाओं ने 9 सितंबर को केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ अपने ग़ुस्से का इजहार किया था। बेरोज़गार युवाओं ने 9 बजे 9 मिनट तक अपने घरों की लाइटें बंद रखीं और दीया, मोमबत्ती जलाकर सरकार तक अपना दर्द पहुंचाने की कोशिश की थी। युवाओं की इस मांग को कई बेरोज़गार संगठनों के अलावा कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), समाजवादी पार्टी ने भी समर्थन दिया।
इस मौक़े पर युवाओं ने केंद्र सरकार से रोज़गार देने की मांग की और कहा कि वे इसे लेकर लंबे समय से आवाज़ उठा रहे हैं। रोज़गार के अलावा उन्होंने रुकी हुई भर्तियों को चालू करने, परीक्षाओं की तिथियों को घोषित करने एवं नई नौकरियों का नोटिफिकेशन जारी करने की भी मांग की।
इस आंदोलन को लेकर ट्विटर पर #9Baje9Minute, #9बजे9मिनट #NoMoreBJP इन हैशटैग के साथ लगातार ट्वीट किए गए।
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