अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपनी भारत यात्रा के ठीक पहले कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा है कि वह भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों में कड़ाई से बात करेंगे क्योंकि अमेरिकी उत्पादों पर सबसे ज़्यादा टैक्स भारत में ही लगते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसी को पसंद हो या न हो, वह अमेरिका फ़र्स्ट की नीति पर ही चलते रहेंगे।
ट्रंप ने कहा कि भारत अमेरिका के व्यापारिक हितों पर बहुत ही ज़ोरदार चोट करता है और वह इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। वह इस मुद्दे पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करेंगे।
ट्रंप ने गुरुवार को कहा, ‘हमें उनसे बात करनी होगी, हमें उनसे व्यापारिक रिश्तों पर बात करनी है। इससे हमें काफी नुक़सान हो रहा है। वे हम पर टैक्स लगाते हैं। भारत हम पर सबसे ज़्यादा टैक्स लगाता है।’
ट्रंप ने गुरुवार को कहा, ‘हम भारत जा रहे हैं, वहां हम उनसे व्यापार पर ज़रूर बात करेंगे। हम भारत से व्यापारिक क़रार करेंगे, पर हम क़रार तभी करेंगे जब भारत हमे अच्छा व्यापारिक क़रार की पेशकश करेगा। किसी को पसंद हो या न हो, हम अमेरिका फ़र्स्ट की नीति पर ही चलेंगे।’
अमेरिका की चिंता समझी जा सकती है। कांग्रेसनल रीसर्च सर्विस ने 2018 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि यूरोपीय संघ के बाद अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। भारत के कुल निर्यात का 17.8 प्रतिशत निर्यात यूरोपीय संघ को हुआ तो 16 प्रतिशत अमेरिका को। भारत अमेरिका का 8वां सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है।
सवाल यह है कि क्या ट्रंप प्रशासन भारत पर दबाव डाल कर व्यापारिक रिश्तों में भारत से अतिरिक्त रियायत चाहता है? क्या वह इस बहाने भारत की बाँह मरोड़ना चाहता है ताकि वह अमेरिकी हथियार, रक्षा उपकरण वगैरह खरीदे? क्या व्हाइट हाउस रूस से एस-400 एअर डिफेन्स सिस्टम के सौदे में अभी भी अडंगा डालना चाहता है?
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पिछले चुनाव में अमेरिका फ़र्स्ट का नारा दिया था। उनका चुनाव प्रचार इस पर टिका हुआ था कि वे अमेरिकी कंपनियों, व्यापार और उद्योग जगत को सबसे ऊपर रखेंगे।
ट्रंप दूसरे देशों को मिल रही रियायतें बंद करेंगे, अमेरिका उन व्यापार संधियों से बाहर निकल जाएगा, जिनसे उसे बहुत फ़ायदा नहीं है, अमेरिका आयात पर नकेल कसेगा और निर्यात पर ज़ोर देगा। इससे अमेरिका में व्यापार बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेगा और वहाँ नई नौकरियाँ निकलेंगी।
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