फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफएटीएफ़) ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में ही रखा है, पर कड़ी चेतावनी दी है कि उसने आतंकवादियों तक पैसे पहुँचने से रोकने के लिए बड़ा कदम नहीं उठाया तो उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
बता दें कि पाकिस्तान पर आतंकवादियों की मदद करने और उन तक पैसे पहुँचने से रोकने के लिए पर्याप्त कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगते रहे हैं। पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में है, यानी उस पर निगरानी रखी जा रही है।
उसे एफ़एटीएफ़ ने कई दिशा निर्देश दे रखे हैं, कुछ सुझाव दिए हैं और उन्हें लागू करने के आदेश दिए हैं। यदि पाकिस्तान ने उन निर्देशों का पालन हीं किया तो उसे काली सूची में डाला जा सकता है।
काली सूची में डालने का मतलब यह होगा कि पाकिस्तान किसी अंतरराष्ट्रीय संस्थान या बैंक से पैसे नही ले पाएगा, रेटिंग एजेन्सियाँ उसकी क्रेडिट रेटिंग खराब कर देंगी और कोई निजी निवेशक भी पाकिस्तान नहीं जाएगा।
पाकिस्तान ने एफ़एटीएफ़ की कार्रवाई से बचने के लिए कुछ दिन पहले आतंकवादी गुट लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफ़िज सईद को गिरफ़्तार किया था। उसे पाकिस्तानी अदालत ने 5 साल की जेल की सज़ा सुनाई है। इससे पाकिस्तान यह जताना चाहता है कि वह आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहा है।
लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि दरअसल पाकिस्तान ने एफ़एफटीएफ़ की आँखों में धूल झोंकने के लिए कार्रवाई करने का नाटक किया है।
इस बार की बैठक में तीन देशों ने ख़ास रूप से पाकिस्तान का साथ दिया। तुर्की, मलेशिया और चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया। इसकी वजह बदलती राजनीतिक-भौगोलिक स्थितियाँ हैं।
ये देश भी मानते हैं कि आतंकवादियों तक पैसे पहुँचने से रोकने में पाकिस्तान आनाकानी करता रहता है या इसमें वह नाकाम रहा है।
बता दें कि एफ़एटीएफ़ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाली संस्था है। इसके कुल 38 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत, अमरीका, रूस, ब्रिटेन, चीन भी शामिल हैं। पाकिस्तान अक्टूबर 2018 से ही एफ़एटीएफ़ की ग्रे लिस्ट में है। ऐसा पाकिस्तान के आतंकवाद को किए जाने वाले वित्त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने की आशंका को देखते हुए किया गया था।
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