महंगाई अब बहुत महंगी पड़ने लगी है। अब तक तो जनता ही इसकी मार झेल रही थी लेकिन अब लगता है कि सरकार को भी यह डर सता रहा है कि महंगाई कहीं उसे भी महंगी न पड़ जाए। इसी का असर है कि एक के बाद एक एलान हो रहे हैं। पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज़ ड्यूटी घटाने का फैसला। गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन। चीनी के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध। सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के ड्यूटी फ्री इंपोर्ट का फैसला। स्टील पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने का फैसला। स्टील के कच्चे माल के इंपोर्ट पर ड्यूटी हटाने का फैसला। ये सारे फैसले एक ही दिशा में जाते हैं। महंगाई को किसी तरह मात दी जाए। यानी अब बढ़ते भावों की आंच सत्ता के सिंहासन को भी महसूस हो रही है। महसूस होनी भी चाहिए। खुदरा महंगाई का आंकड़ा आठ साल में सबसे ऊपर पहुंच चुका है और थोक महंगाई का आंकड़ा तेरह महीने से लगातार दो अंकों में है यानी यहां महंगाई बढ़ने की रफ्तार दस परसेंट से नीचे गई ही नहीं है।

जीडीपी विकास दर की रिपोर्ट मंगलवार को जारी हुई। इसमें चौथी तिमाही में वह दर गिरकर 4.1 फ़ीसदी तक पहुँच गई। ऐसे में क्या बेतहाशा बढ़ती महंगाई भारत के विकास की गति को बेपटरी कर देगी?
जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा अनुमान के मुताबिक ही आया है। महंगाई की मार को देखते हुए ही आशंका थी कि यह आंकड़ा चार परसेंट के आसपास रहेगा। फिक्र की बात यह है कि यहां भी प्राइवेट कंजंप्शन यानी गैर सरकारी खर्च के आंकड़े में बढ़ोत्तरी फिर कमज़ोरी दिखा रही है। उसमें बढ़त नहीं दिख रही है। और जीडीपी आंकड़े के कुछ ही पहले सरकारी घाटे का आंकड़ा भी आया जो दिखा रहा है कि सरकारी घाटा जो जीडीपी का 6.9% तक जाने का अनुमान था इस बार वो सिर्फ 6.7% ही रहा है। लेकिन इसका एक मतलब यह भी है कि शायद सरकार ने अपने खर्चों पर भी लगाम कसी है। और निजी खर्च में भी कमी आने का मतलब तो यह है कि महंगाई का असर बढ़ रहा है।