गूगल, एप्पल, फ़ेसबुक और एमेजॉन जैसी बड़ी और अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनियों का बाज़ार पर एकाधिकार जल्द ही ख़त्म हो सकता है। यह भी हो सकता है कि इन कंपनियों को छोटी-छोटी कंपनियों में बाँट दिया जाए। यह इस पर निर्भर है कि अमेरिका में एंटी-ट्रस्ट नियमों में कितना और कैसा बदलाव किया जाता है। फ़िलहाल तो वहां होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी में यह बात दब जा सकती है, पर चुनाव के बाद नए प्रशासन को इस सवाल से जूझना होगा।
अमेरिकी संसद की न्यायिक समिति ने 449 पेज की भारी-भरकम रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई है कि किसी समय छोटे-मोटे स्टार्ट अप से शुरू हुई इन कंपनियों ने नियम-क़ानूनों को ताक पर रख कर बाज़ार पर ठीक वैसा ही एकाधिकार कर लिया है जैसा किसी समय तेल कंपनियों और उसके भी पहले रेल कंपनियों ने किया था। संसद की इस कमिटी में डेमोक्रेटिक सदस्यों का बहुमत है, इसलिए यदि उनके उम्मीदवार जो बाइडन राष्ट्रपति चुनाव जीतते हैं तो यह मामला और आगे बढ़ाया जा सकता है।
नियमों का उल्लंघन
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन टेक कंपनियों ने नियम-क़ानूनों का उल्लंघन किया है। उन्होंने अपनी मनमर्जी से कीमतें तय की हैं, व्यापार के नियमों को तोड़ा है।
इसके अलावा उन्होंने सर्च, विज्ञापन, पब्लिशिंग और सोशल नेटवर्किंग से जुड़े क़ानूनों को धता बताया है ताकि वे बाज़ार पर एकाधिकार जमा सकें और ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकें, अपने कारोबार को अधिक से अधिक बढ़ा सकें।
पुनर्गठन
अमेरिकी संसद की न्यायिक कमिटी ने इसे ठीक करने के उपाय भी सुझाए हैं। उसने कहा है कि इन बड़ी कंपनियों के कामकाज को बाँट कर छोटी-छोटी कई कंपनियों में कर दिया जाए, उन्हें दूसरी कंपनियों से व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा को मजबूर किया जाए और स्टार्ट-अप के अधिग्रहण या विलय से जुड़े नियम क़ानून को सख़्त बनाया जाए।कमिटी ने सुझाव दिया है कि व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा से जुड़े एंटी-ट्रस्ट नियमों में बदलाव किए जाएं और उन्हें सख़्ती से लागू किया जाए ताकि इन कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धा में भाग लेना ही पड़े।
प्रतिस्पर्द्धा
कमिटी ने रिपोर्ट में कहा है, 'हमारे शोध के बाद अब इसमें कोई संदेह नहीं बचा है कि कांग्रेस और एंटी-ट्रस्ट एजंसियाँ जल्द से जल्द कार्रवाई करे ताकि प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाई जा सके, दूसरों का भी मनोबल बढ़ाया जा सके और दूसरी कंपनियों के हितों की रक्षा की जा सके।'डेमोक्रेट सदस्यों ने रिपोर्ट में कहा है कि इन कंपनियों को रीस्ट्रक्चर किया जाए, वे अपनी ही कंपनी के दूसरे उत्पादों को जो प्राथमिकता देते हैं, उसे बंद किया जाए। गूगल का नाम ले कर कहा गया है कि वह ऐसा खूब करता है। यह भी कहा गया है कि इन कंपनियों को छोटी कंपनियों में तोड़ने के बाद यह ध्यान रखा जाए कि वे कंपनियां भी यही सब काम न करने लगे।
क्या कहा प्रमिला जयपाल ने?
इस समिति ने जून 2019 में इन मुद्दों पर काम शुरू किया था। जुलाई महीने में एमेज़ॉन के जेफ़ बेज़ोज़, एप्प्ल के टिम कुक, फ़ेसबुक के मार्क ज़करबर्ग और गूगल के सुंदर पिचाई को तलब किया था। संसदीय समिति ने उन्हें कई तरह के कठिन सवाल पूछे थे और उन पर सफाई मांगी थी।न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय मूल की रिपब्लिकन सीनेटर प्रमिला जयपाल ने कहा,
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'इन कंपनियों के अपने ही प्लैटफार्म को खरीदने और उसी से प्रतिस्पर्द्धा करने पर कोई रोक नहीं है, इससे सही अर्थों में प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है।'
प्रमिल जयपाल, सीनेटर, रिपब्लिकन पार्टी
प्रमिला जयपाल ने इसके पहले एमेज़ॉन की कई मुद्दों पर कई बार आलोचना की है।
क्या कहना है कंपनियों का?
गूगल ने कमिटी की रिपोर्ट का विरोध करते हुए कहा है कि इसकी मुफ़्त सेवा उपभोक्ताओं के लिए वरदान है। सर्च, मैप्स और जीमेल बिल्कुल मुफ़्त हैं और करोड़ों अमेरिकियों ने इसका फ़ायदा उठाया है, कंपनी ने यह कहा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह भी कहा है कि एमेज़ॉन ने भी रिपोर्ट का विरोध करते हुए कहा है कि नए प्रावधानों से छोटे व्यवसायियों और उपभोक्ताओं को नुक़सान होगा।
एप्पल ने भी इसका विरोध करते हुए कहा है कि एप्प स्टोर से नए बाज़ार बने हैं, नई सेवाएं शुरू हुई हैं और वैसे नए उत्पाद लोगों को मिले है, जिनके बारे में कुछ साल पहले तक सोचा नहीं जा सकता था।
यूरोप में भी उठे थे सवाल
याद दिला दें कि इन टेक कंपनियों के एकाधिकारवादी प्रवृत्तियों पर यूरोप में भी कई बार सवाल उठे हैं। यूरोपीय संघ ने उन्हें कई बार चेतावनी दी है और प्रतिस्पर्द्धा बरक़रार रखने की चेतावनी दी है। पर नतीजा कुछ नहीं हुआ।अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। इस रिपोर्ट में अधिकतर सदस्य डेमोक्रेट थे, लिहाजा जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने पर उन पर इसे लागू करने का दबाव बन सकता है।
लेकिन रिपब्लिकन सदस्यों ने भी इसका मुखर विरोध नहीं किया है और कई सदस्यों ने कहा है कि वे रिपोर्ट की अधिकतर बातों से सहमत है। अब सवाल यह है कि यदि डोनल्ड ट्रंप जीतते हैं तो वह क्या करेंगे? क्या वे इन कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे? यह सवाल कठिन है क्योंकि वह 'अमेरिका फर्स्ट' के नारे के साथ चलते हैं। दूसरे, उनके बारे में कहा जाता है कि वह बड़े कॉरपोरेट घरानों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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