अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत- इन चारों देशों के चौगुटे की बैठक, जो तोक्यो में हुई, वह अजीब-सी रही। इन चारों देशों के विदेश मंत्री एक-दूसरे से साक्षात मिले और चारों ने प्रशांत-क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के बारे में विचारों का आदान-प्रदान किया। यह चौगुटा अमेरिका की पहल पर बनाया गया है।
जैसे अमेरिका ने सोवियत संघ के विरुद्ध नाटो और सेन्टो के सैन्य-गुट खड़े किए थे, वैसे ही वह अब चाहता है कि चीन के विरुद्ध चक्रव्यूह खड़ा किया जाए। यह डोनल्ड ट्रंप के दिमाग की उपज है।
चीन का विरोध
ट्रंप ने पहले तो चीन के प्रति नरम-गरम रवैया अपनाया लेकिन कोरोना महामारी के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराकर उन्होंने उसके विरुद्ध खुला वाग्युद्ध छेड़ दिया। अब वह चाहते हैं कि चीन को सबक सिखाया जाए। इसीलिए उनके विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने तोक्यो बैठक में चीन के ख़िलाफ़ जमकर आरोप लगाए। उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का नाम लेकर कहा कि उसके शोषण, भ्रष्टाचार और दादागीरी का डटकर विरोध किया जाना चाहिए। उन्होंने हांगकांग और ताइवान के ख़िलाफ़ किए जा रहे चीनी अत्याचारों का भी जिक्र किया।शेष तीनों देशों के विदेश मंत्रियों के जो भाषण हुए, उनमें किसी ने भी चीन का नाम तक नहीं लिया। उनमें से कोई चीन से पंगा लेने को तैयार नहीं था। उनके भाषणों का सार यही था कि ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ में ‘क़ानून का राज’ चलना चाहिए और समुद्री मार्ग सबके लिए खुले होने चाहिए।
हां, चीनी सरकार ने अमेरिकी रवैए की भर्त्सना करते हुए कहा कि किसी अन्य राष्ट्र की टांग खींचने के बजाय इस तरह के संगठनों को परस्पर सहयोग बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
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