भारत के नौकरी संकट के बारे में एक सवाल के जवाब में, प्रधानमंत्री ने पूछा: "अगर पकौड़े बेचने वाला व्यक्ति दिन के अंत में 200 रुपये घर ले जाता है, तो क्या यह रोजगार नहीं है?" (जनवरी2018)।
मोदी जी, पिछले आठ सालों में पहली बार देश में ग़रीबी बढी है!
- अर्थतंत्र
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- 24 Jan, 2022

क्या नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से पिछले आठ सालों में पहली बार ग़रीबी बढ़ी है? क्या यह नोटबंदी व ग़लत तरीके से जीएसटी लागू करने का नतीजा है?
पकौड़ा अर्थव्यवस्था
सवाल यह है: पाँच लोगों के लिए 6,000 रुपये माह (200x30) की कमाई क्या पर्याप्त होनी चाहिए? भारत की ग़रीबी रेखा 2011-12 में प्रति माह प्रति व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र में 817 रुपए और शहरी इलाक़े में 1,000 रुपए थी।
अगर हम भारत की इस आधिकारिक ग़रीबी रेखा को 2019-20 तक प्रोजेक्ट करते हैं, तो पाँच लोगों के लिये ग़रीबी रेखा शहरी इलाक़ों में 7,340 रुपये और ग्रामीण इलाक़ों में 6,100 रुपए होगी। इसका मतलब है कि 'पकौड़े बेचने' से होने वाली आमदनी शहरी ग़रीबी रेखा की आय से भी कम होगी।
अगर हम भारत की इस आधिकारिक ग़रीबी रेखा को 2019-20 तक प्रोजेक्ट करते हैं, तो पाँच लोगों के लिये ग़रीबी रेखा शहरी इलाक़ों में 7,340 रुपये और ग्रामीण इलाक़ों में 6,100 रुपए होगी। इसका मतलब है कि 'पकौड़े बेचने' से होने वाली आमदनी शहरी ग़रीबी रेखा की आय से भी कम होगी।
प्रोफ़ेसर संतोष मेहरोत्रा जर्मनी के बॉन स्थित आईज़ेडए इंस्टीच्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स में रीसर्च फेलो हैं।