गाँवों में नदी किनारे के रहनेवाले अच्छी तरह जानते हैं कि बाढ़ के कहर की असली तस्वीर पानी उतरने के बाद ही सामने आती है। यहाँ तक कि पानी उतरने के बाद भी जो मिट्टी के मकान साबुत खड़े दिखते हैं धूप निकलते ही वो चिटक कर ढहने लगते हैं।

यह आशंका बढ़ रही है कि आनेवाले वक़्त में बहुत तेज़ी से नौकरियों पर तलवार गिरनेवाली है। खासकर वो लोग ख़तरे में हैं जिन्होंने काम शुरू करने के बाद से कोई नया हुनर नहीं सीखा, टेक्नोलॉजी में आगे नहीं बढ़े या जो खुद को लगातार कंपनी के काम का साबित नहीं कर सकते।
कोविड-19 महामारी का हाल भी इससे कुछ अलग नहीं है। शरीर पर असर हो, हमारे काम धंधों पर असर हो या देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर। हरेक की स्थिति यही है। बीमारी के बाद की कमज़ोरी दूर होने का नाम ही नहीं ले रही। कुछ समय लगता है कि कुछ बेहतर हुए फिर अचानक नए लक्षण दिखने लगते हैं। बीमारी से उबरे किसी भी इंसान से बात कीजिए, वो आपको बताएँगे कि किस किस तरह की तकलीफ और कितनी लंबी चल रही है। यह तो उनका हाल है जो बीमार हुए और ठीक हो गए या हो रहे हैं। लेकिन उन लोगों के परिवारों का हाल सोचिए जो नहीं बच पाए। और उन लोगों की फिक्र जिन्हें अभी तक इस बीमारी ने तो नहीं छुआ है लेकिन लगातार ख़तरा बना हुआ है। टीका लगवाने के पहले और उसके बाद भी यह डर बरकरार है कि कहीं कोरोना का नया विषाणु न लग जाए। यह डर भी है कि यह वायरस जिस नए रूप या वैरिएंट में आ रहा है उसपर टीका भी असर करेगा या नहीं।