'सिस्टम' को ही बनाया ज़रिया
नीरव मोदी ने घोटाला करने के लिए पीएनबी के सिस्टम को ही ज़रिया बनाया। बैंक के कर्मियों को अपने साथ मिला लिया। नीरव और उसके मामा मेहुल चोकसी ने फ़र्ज़ी लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग्स (एलओयू) के ज़रिए पीएनबी से रकम ली। यह एलओयू भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से छोटी अवधि के लिए कर्ज़ लेने में काम आते हैं। कर्ज़ की राशि का भुगतान एलओयू जारी करने वाला बैंक करता है जिसे बाद में ग्राहक को चुकाना होता है। ग़लत तरीके से आरोपी बैंक कर्मी एलओयू जारी करते रहे। इसी एलओयू के आधार पर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने कर्ज़ दे दिया। बैंक के अंदर की खामियों का फ़ायदा उठाते हुए वे सात साल तक पकड़ में नहीं आए। बैंक में गड़बड़ी से पर्दा तब हटा जब पुराने बैंक कर्मियों की जगह नए कर्मी आए और नीरव मोदी की कंपनी के लोगों ने उनसे जनवरी में दोबारा एलओयू जारी करने की गुज़ारिश की। नए अधिकारियों ने यह ग़लती पकड़ ली और सीबाआई में शिकायत दर्ज़ कराई।
क्या नीरव की होगी गिरफ़्तारी?
जांच एजेंसी सीबीआई अब तक नीरव तक पहुंच भी नहीं सकी है। नीरव के इंग्लैंड में होने की वहां के अफसरों ने जब पुष्टि कर दी तो भारत ने प्रत्यर्पण अपील की। लेकिन हीरा क़ारोबारी के जल्द प्रत्यर्पण की उम्मीद का ही है, क्योंकि भारत को इंग्लैंड से प्रत्यर्पण का अनुभव ठीक नहीं रहा है। पिछले 16 सालों में 28 लोगों के प्रत्यर्पण की अपील की गई है। नौ मामलों में तो इंग्लैंड ने तो प्रत्यर्पण करने से इनकार कर दिया है। तीन मामलों में इंग्लैंड की अदालतों ने गिरफ़्तारी वारंट जारी करने से मना कर दिया है। शराब कारोबारी विजय माल्या सहित 15 अन्य भगोड़ों के मामले अब भी पेंडिंग हैं।
पैसा वसूलना आसान नहीं
ईडी ने अब तक 6,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की नीरव की संपत्तियां ज़ब्त की हैं। ईडी ने पहले जो 5,100 करोड़ रुपए के ज़ेवर और बेशक़ीमती डायमंड ज़ब्त किए थे, बाद में उनकी क़ीमत सिर्फ़ 2 हज़ार करोड़ ही निकली। दरअसल, जब चीजें ज़ब्त की जाती हैं तब उनकी जो क़ीमत बताई जाती है, बाद में असल क़ीमत वह नहीं निकलती। ईडी के लिए ज़ब्त सामान को बेचकर पैसा वसूलना उतना आसान नहीं होगा। ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा है, क्योंकि इसका एक उदाहरण 2जी स्कैम की ज़ब्त की गई संपत्ति से देखा जा सकता है। तब ईडी ने 200 करोड़ रुपये की चीजें जब्त की थी, उन्हें अब तक बेचा नहीं जा सका है। एक समस्या यह भी है कि जब तक आरोपी को कोर्ट दोषी नहीं मान लेती, तब तक उसकी प्रॉपर्टी को बेचा भी नहीं जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया में लंबा वक़्त लगता ही है। मामला ईडी के पक्ष में होने के बावजूद निचली अदालत से होते हुए यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है। अगर आरोपी को दोषी घोषित किया जाता है तब ईडी उस प्रॉपर्टी को बेच सकता है।
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