क्या देश की अर्थव्यवस्था में सबकुछ ठीक चल रहा है? क्या भारत 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है? आँकड़े बता रहे हैं कि ऐसा नहीं है। सरकार चाहे जो दावे करे, वित्त मंत्री चाहें जो कहे, अर्थव्यवस्था की स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है। तमाम इन्डीकेटर बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था गोते खा रही है।
सोमवार को जारी आँकड़े बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था के 8 कोर सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ हुआ है, यानी विकास तो नहीं हुआ है, उसके उलट वह पीछे खिसका है।
यह अर्थव्यवस्था के लिए बेहद बुरा इसलिए है कि इन्डेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन यानी औद्योगिक उत्पादन इनडेक्स में इन सेक्टरों का योगदान 40 प्रतिशत से भी ज़्यादा है।
कोर सेक्टर में यह गिरावट ऐसे समय आई है जब सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में वृद्धि की दर छह साल के न्यूतम स्तर यानी 5 प्रतिशत पर है। आज थोड़ी देर पहले आए ऑटो सेक्टर के नतीजों ने भी लोगों को निराश ही किया है।
लगातार दसवें महीने कारों की बिक्री में गिरावट रही है। पिछले एक साल में इसमें 30.9 फ़ीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल अगस्त महीने में जहाँ क़रीब तीन लाख कारों की बिक्री हुई थी वहीं इस साल अगस्त में यह गिरकर क़रीब दो लाख तक पहुँच गई है।
यह गिरावट माँग में कमी आने के कारण है और लोगों की ख़रीदने की क्षमता कम हुई है। बहुत सारे लोगों की नौकरियाँ गईं हैं और जो लोग नौकरी में हैं वह भी पैसे ख़र्च नहीं करना चाहते हैं।
हाल ही में फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन ने कहा था कि बीते साल भर में डीलरों से जुड़े 2 लाख लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं। सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर्स (एसआईएएम) का कहना है कि ऑटो सेक्टर में कुल मिला कर लगभग 3.50 लाख लोगों की नौकरी गई है। यदि इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया और स्थिति ऐसी ही चलती रही तो इस सेक्टर में 10 लाख लोगों की नौकरी जा सकती है।
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपनी हालिया रपट में कहा है कि कई क्षेत्रों में गिरावट का दौर शुरू हो चुका है यह अभी तुरन्त ख़त्म नहीं होगा। मैन्युफ़ैक्चरिंग, होटल, ट्रेड, ट्रांसपोर्ट, दूरसंचार, कंस्ट्र्कशन और कृषि, ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें मंदी अभी चलेगी।
ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, ये खबरें चिंताजनक हैं,अर्थव्यवस्था मंदी में है, लेकिन उससे बाहर निकलने की कोई गुंजाइश फ़िलहाल नहीं दिख रही है। संकट बरक़रार ही नहीं, यह बढ़ता जा रहा है, यह गहरा हो रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो घोषणाएँ की हैं, उससे स्थिति में कोई भारी बदलाव होगा, ऐसा भी नहीं लगता है। वित्त मंत्री ने जिस स्टुमलस पैकेज यानी कॉरपोरेट जगत से जुड़े नियम क़ानून में कई तरह के बदलाव करने की घोषणा की, पर्यवेक्षकों का कहना है कि वह नाकाफ़ी है। इसका कोई ख़ास नतीजा नहीं निकलेगा। इसी तरह बैंकों के विलय से बैंकिंग उद्योग में चुस्ती तो आएगी, पर यह सेक्टर बहुत ही अच्छा काम कर लेगा, इसकी गुंजाइश भी कम ही है। इसके साथ ही विलय की वजह से नौकरियाँ जाएंगी, सरकार भले ही यह कहे कि किसी की नौकरी नहीं जाएगी। यह साफ़ है कि ये घोषणाएँ अर्थव्यवस्था को बहुत आगे नहीं ले जाएँगी।
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