नया साल आते ही अब बजट का शोर तेज़ हो जाता है। आखिर इस सरकार ने बजट की तारीख एक महीना पहले भी तो कर दी है। फरवरी की आखिरी तारीख के बजाय अब फरवरी के पहले दिन ही बजट आने लगा है। तर्क है कि इससे बजट समय से पास हो सकता है और अगला वित्तवर्ष शुरू होने के पहले ही सरकार को काम शुरू करने का अख्तियार मिल जाता है। इसका एक नतीजा यह भी हुआ है कि नए साल के बाद जब तक आम लोगों को बजट की याद आती है उससे पहले ही सरकार बजट पर ज्यादातर काम ख़त्म कर चुकी होती है।

आम बजट के बस कुछ दिन ही रह गए हैं। आयकर स्लैब को बढ़ाने और टैक्स घटाने की मांग इस बार ज़ोर पकड़ चुकी है। चुनाव देखते हुए इसकी उम्मीद भी तेज़ है। तो क्या इस बार यह संभव होगा?
यूँ तो वित्तमंत्रालय में एक पूरा विभाग है जो साल भर बजट के ही काम में जुटा रहता है लेकिन सरकार के तमाम मंत्रालयों और देश-समाज के ऐसे तमाम तबक़ों से चर्चा का काम भी साल की आखिरी तिमाही में होता है जिनपर बजट का असर पड़ता है। वो बताते हैं कि उन्हें बजट से क्या चाहिए और यह भी कि बजट में उसका इंतज़ाम कैसे हो सकता है। खासकर अर्थशास्त्री, कृषि विशेषज्ञ और बड़े-छोटे उद्योग संगठन तो एक तरह से पूरे बजट का खाका ही अपनी तरफ़ से सामने रखते हैं ताकि सरकार उनकी बात पर गंभीरता से विचार करे।