देश की आर्थिक बदहाली पर अब तक देशी-विदेशी एजेन्सियाँ और विपक्षी पार्टियाँ चिंता जताया करती थीं, सरकार उन्हें खारिज कर देती थी। प्रधानमंत्री ने तो अर्थव्यवस्था पर चिंता जताने वालों को पेशेवर निराशावादी (प्रोफेशनल पेसिमिस्ट) तक क़रार दिया है। पर अब सत्तारूढ़ दल के सहयोगी और सरकार में शामिल दलों के लोग भी खुले आम इस पर बोलने लगे हैं। बीजेपी के सहयोगी दलों का असंतोष इतना बढ़ चुका है कि उन्होंने इस मुद्दे पर अर्थशास्त्रियों, विशेषज्ञों और इन दलों के शीर्ष नेताओं की बैठक बुलाने की माँग कर दी है।
शुक्रवार को जारी आँकड़ों के मुताबिक़, चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर गिर कर 6 साल के न्यूनतम स्तर 4.5 प्रतिशत पर पहुँच गई। इसके बाद सहयोगी दलों में एक तरह से अफरातफरी का माहौल है। एक सहयोगी ने ‘सरकार में प्रतिभा की कमी’ की बात कही तो दूसरे ने इस स्थिति को ‘बेहद चौंकाeने वाली’ (अलार्मिंग) क़रार दिया।
शिरोमणि अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि देश की आर्थिक स्थिति को बेहद चौंकाने वाली (अलार्मिंग) है। उन्होंने कहा, ‘सरकार में शामिल सभी दल बहुत ही दुखी हैं। कुछ तो छोड़ कर जा चुके हैं और कुछ दूसरे इंतज़ार कर रहे हैं। हम किसी पद की माँग नहीं कर रहे हैं, पर हमसे राय-मशविरा तो करनी ही चाहिए।’
गुजराल ने कहा, ‘कैबिनेट में प्रतिभा की कमी है। हमने देखा है कि कुशल मंत्रियों से चलाए जाने वाले विभाग अच्छा काम कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि बीजेपी में अच्छे लोगों की कमी है, जबकि दूसरी ओर कुछ मंत्रियों पर काम का बहुत ज़्यादा बोझ है।’
जनता दल (युनाइटेड) ने गिरते विकास दर, सरकारी कंपनियों की बिक्री, ख़राब कृषि और गाँवों से लोगों के पलायन जैसे मुद्दों पर चिंता जताई है। इसके नेता के. सी. त्यागी ने कहा :
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सरकार को अर्थशास्त्रियों और पूर्व आरबीआई गवर्नरों की चेतावनियों का मखौल नहीं उड़ाना चाहिए, इसे लोगों से बात करनी चाहिए। सरकार को अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक दलों के लोगों की बैठक होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जैसे लोगों को बुलाए और उनसे बात करे, यह मामला टकराव का नहीं, राय-मशविरे का है।
के. सी. त्यागी, नेता, जनता दल (युनाइटेड)
चिंता की बात यह है कि सत्तारूढ़ बीजेपी इसके बाद भी कुछ सीखने को तैयार नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने शुक्रवार के नतीजे आने के बाद बीजेपी के कुछ नेताओं से बात की तो उन्होंंने जो कुछ कहा, वह अर्थव्यवस्था को लेकर पार्टी की सोच ही दर्शाती है।
एक नेता ने कहा, ‘जब एनएससओ ने बेरोज़गारी और ग्रामीण खपत पर रिपोर्ट दी तो हमारे लोगों ने ऑटो बिक्री, ओला-उबर सेवा, भीड़ भरे हवाई अड्डे और सिनेमा के आँकड़े देकर उसका जवाब दिया। वित्त मंत्री ने मंदी तो नहीं, लेकिन आर्थिक सुस्ती की बात मान ली है, इससे ही साफ़ है कि सरकार अंत में स्थिति को स्वीकार कर रही है।’
निर्मला सीतारमण ने बीते दिनों कहा कि आर्थिक गतिविधियाँ धीमी ज़रूर हो गई हैं, पर मंदी नही आई है, मंदी की कोई संभावना नहीं है। बीजेपी के कुछ नेता ख़ुद अर्थव्यवस्था को लेकर परेशान हैं, पर वे खुल कर कुछ बोलने से कतराते हैं। उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का डर है कि कुछ बोलने को शीर्ष नेतृत्व की आलोचना मान कर उन्हें दंडित न किया जाए।
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