महंगाई ने फिर ख़तरे की घंटी बजा दी है। जनवरी में खुदरा महंगाई का आँकड़ा एक बार फिर रिज़र्व बैंक की पहुँच से बाहर छलांग लगा गया है। दिसंबर में बारह महीने में सबसे कम यानी 5.72% पर पहुंचने के बाद जनवरी में खुदरा महंगाई की रफ्तार फिर उछलकर 6.52% हो गई है। पिछले साल 2022 के शुरुआती दस महीने यह आंकड़ा रिजर्व बैंक की बर्दाश्त की हद यानी दो से छह परसेंट के दायरे से बाहर ही रहा और सिर्फ नवंबर-दिसंबर में काबू में आता दिखाई पड़ा था। जनवरी में फिर इसका यह हद पार कर जाना फिक्र की बात है।
महंगाई का आँकड़ा पूरी तसवीर नहीं दिखा रहा, स्थिति ज्यादा डरावनी है!
- अर्थतंत्र
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- 21 Feb, 2023

नवंबर और दिसंबर में महंगाई कम होती दिखी थी तो क्या मुसीबत टल गई है? जनवरी में फिर से महंगाई बढ़ने और रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी किए जाने के क्या मायने हैं?
फ़िक्र की बात इसलिए भी है क्योंकि महंगाई का जो आँकड़ा नज़र आ रहा है वो दरअसल, पूरी तसवीर दिखा नहीं पा रहा है। आँकड़ों की छानबीन करनेवाले जानकार बता रहे हैं कि अगर सब्जियों के दाम गिरे नहीं होते तो इस वक़्त यह महंगाई और डरावनी दिखाई देती। पिछले दो महीनों में भी जो गिरावट दिखाई पड़ी उसकी वजह खाने-पीने की चीजों के दाम ही थे। खाद्य महंगाई का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में चालीस परसेंट हिस्सा है।