भारत में अमीर और ग़रीब के बीच की खाई पहले से अधिक चौड़ी हो गई है और यह बढ़ती ही जा रही है। इसे इससे समझा जा सकता है कि सबसे धनी 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपदा का 50 प्रतिशत है, दूसरी ओर सबसे ग़रीब 50 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 10 प्रतिशत जायदाद है।
नेशनल सैंपल सर्वे के एक अध्ययन में यह पाया गया है।
इस अध्ययन में किसी व्यक्ति विशेष की जायदाद की एक मौद्रिक कीमत आँकी गई, जिसमें उसका घर, ज़मीन, मकान, घर की चीजें, जानवर समेत समेत तमाम चीजों की कीमत निकाली गई। इसमें बैंक व दूसरी जगहों पर जमा पैसे भी जोड़े गए।
जनवरी 2019 में किए गए अध्ययन से पता चला कि शहरों में कुल मिला कर 274.6 लाख करोड़ रुपए की जायदाद है। इसमें से 130.6 लाख करोड़ रुपए सिर्फ संपन्न 10 प्रतिशत लोगों के पास है।
इसी अध्ययन के अनुसार,
गाँवों में 238.1 लाख करोड़ रुपए की कुल जायदाद है, जिसमें से 132.5 लाख करोड़ रुपए 10 प्रतिशत धनी लोगों के पास है।
गाँवों में सबसे ग़रीब 50 प्रतिशत लोगों के पास 10.2 प्रतिशत जायदाद है जबकि शहरों में इससे भी कम यानी 6.2 प्रतिशत जायदाद है।
धनी-ग़रीब के बीच की यह खाई अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग ढंग से है। सबसे बुरा हाल दिल्ली में है। इसके ग्रामीण इलाकों में संपन्न लोगों के पास कुल जायदाद का 80 प्रतिशत हिस्सा है। इसकी वजह यह है कि दिल्ली के पास जो भी ग्रामीण इलाक़ा बचा हुआ है, वहाँ ज़मीन की कीमत बहुत अधिक है।
दिल्ली के गाँवों के सबसे ग़रीब 50 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 2.1 प्रतिशत जायदाद है।
पंजाब के सबसे संपन्न 10 प्रतिशत लोगों के पास 65 प्रतिशत जायदाद है। दूसरी ओर, सबसे ग़रीब 50 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 5 प्रतिशत जायदाद है।
ग़रीब का पैसा धनी की जेब में?
इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि ऐसे समय में जब कोरोना महामारी के कारण विश्व अर्थव्यवस्था चौपट हो गई, करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए, दुनिया की कोई अर्थव्यवस्था इसकी चपेट में आने से नहीं बच सकी, आख़िर कैसे अरबपतियों की संख्या पाँच गुणे बढ़ गई और सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाने वाले व्यक्ति की जायदाद में 100 अरब डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई?
यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का सामान्य नतीजा है, आपदा में अवसर तलाशने का फल है या कुछ लोगों की मजबूरी का लाभ उठा कर करोड़ों कमाने की कोशिशों का नतीजा है?
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