केंद्र सरकार ने वित्तीय क्षेत्र में आर्थिक सुधार के अगले चरण के रूप में दो सरकारी बैंकों और एक सरकारी बीमा कंपनी के निजीकरण का फ़ैसला किया है। वह इसके अलावा आईडीबीआई बैंक के अपने पूरे शेयर बेच देगी। इसके लिए विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाएंगे।
निजीकरण की यह सरकारी मुहिम उस योजना का हिस्सा है, जिसके तहत नरेंद्र मोदी सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकारी उपक्रमों के अपने हिस्से बेच कर 1.75 लाख करोड़ रुपए उगाहने का लक्ष्य तय कर रखा है।
बैंकों का निजीकरण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल बजट पेश करते समय एलान किया था कि दो सरकारी बैंकों का निजीकरण कर दिया जाएगा, लेकिन उन्होंने उन बैंकों के नाम नहीं बताए थे। लेकिन यह बहुत जल्दी साफ हो जाएगा क्योंकि सरकार को इससे जुड़े विधेयक पेश करने होंगे और उनमें उन बैंकों के बारे में बताना होगा।
आईडीबीआई बैंक तकनीकी रूप से निजी बैंक है, जिसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 45.5 प्रतिशत है। लेकिन इसके साथ इसमें सरकारी कंपनी जीवन बीमा निगम के 49.24 प्रतिशत है। इस तरह इस बैंक में सरकार की हिस्सेदारी लगभग 95 प्रतिशत है।
वित्तीय सुधार
समझा जाता है कि सरकार इसमें अपना पूरा हिस्सा बेच देगी, इस पर कैबिनेट कमेटी का फ़ैसला हो चुका है।
सरकार इसके जरिए बैंकिंग क्षेत्र में सुधार का दूसरा चरण शुरू करने जा रही है। पहले चरण के तहत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगस्त 2019 में एलान किया था कि अलग-अलग रूप से 10 बैंकों का विलय किया जाएगा और उसके बाद 4 नए बैंक बनेंगे। इसके बाद कुल मिला कर 12 सरकारी बैंक होंगे। याद दिला दें किसी समय देश में कुल 27 सरकारी बैंक थे।
यह प्रक्रिया 1 अप्रैल 2020 को पूरी हो गई।
- इसके तहत पंजाब नेशनल बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स और युनाइटेड बैंक का विलय कर एक बैंक बनाया गया।
- केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक का विलय कर एक बैंक बनाया गया।
- इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक का विलय कर दिया गया।
- यूनियन बैंक. कॉरपोरेशन बैंक और आंध्रा बैंक का विलय कर एक बैंक बनाया गया।
अब देश में देश में कुल 12 सरकारी बैंक ही हैं।
सरकार अब इनमें से दो बैंकों का निजीकर करने जा रही है।
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