राज्यसभा के पूर्व सांसद जवाहर सरकार का कहना है कि सांसद के रूप में लिखे गए उनके आखिरी पत्रों में से एक के जवाब में वित्त राज्य मंत्री ने आखिरकार पुष्टि कर दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले 10 वर्षों के दौरान 16.11 लाख करोड़ रुपये बैंकों ने माफ कर दिए। हमारे सामने पहली बार पूरी तस्वीर सामने आई है। हालांकि इस पर कई वर्षों से नज़र रखी जा रही थी। लेकिन गुप्त जानकारी आंशिक तौर पर बाहर आती थी। जो अक्सर प्रकट करने की बजाय छिपाती ज्यादा है।
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याद कीजिए यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार के समय में महज 2 लाख करोड़ रुपये (या उससे भी कम) कारोबारियों के माफ किये गये थे और वो सबसे भ्रष्ट सरकार कहलाई। लेकिन मोदी राज में 10 वर्षों में तो 16.11 लाख करोड़ रुपये कारोबारियों के माफ कर दिये गये। यूपीए सरकार में माफ किये गये दो लाख करोड़ इसका महज 8वां हिस्सा है। मीडिया तमाम ऐसे कारोबारियों की सफलता की कहानियां गढ़ रहा है, जबकि इनमें से तमाम बैंकों का पैसा डकार कर कथित सफल कारोबारी बने हैं
जवाहर सरकार ने अपने लेख में इस पर रोशनी डाली है। उन्होंने लिखा है- एनडीए 1 और एनडीए 2 के बारे में जरा सोचिए। 16.11 लाख करोड़ कितनी बड़ी रकम है। लेकिन एक सुनियोजित अभियान के जरिए यूपीए 2 सरकार को 'असहनीय रूप से भ्रष्ट' घोषित किया गया था। बहरहाल, अब वास्तव में जागने का समय आ गया है। इससे पहले कभी भी धोखाधड़ी, पूंजीपतियों और अमीर वर्ग ने हमारे पैसे के साथ ऐसा खिलवाड़ नहीं किया था।
मोदी राज में बट्टे खाते में बैंकों के डाले गये 16.11 लाख करोड़ रुपये की तुलना 2008 में यूपीए सरकार द्वारा 60,000 करोड़ रुपये की अंतिम कृषि ऋण माफी से की जा सकती है। उस समय यानी यूपीए राज में किसानों के माफ किये गये 60,000 करोड़ को आर्थिक समाचार पत्रों ने खारिज कर दिया था। उन्होंने किसानों की कर्ज माफी को लोकलुभावन फिजूलखर्ची बताया था। अब जब कारोबारियों के 16.11 लाख करोड़ माफ कर दिये गये या बट्टे खाते में डाल दिये गये तो वही आर्थिक अखबार और गोदी मीडिया चुप है। एक तरफ किसानों की कर्ज माफी पर मीडिया फिजूलखर्ची बताता है तो दूसरी तरफ कारोबारियों के लोन माफ करने पर चुप रहता है।
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16.11 लाख करोड़ के लाभार्थियों में कर्ज में डूबे किसान नहीं, बल्कि बड़ी पूंजी वाले जनता का पैसा डकारने वाले धोखेबाज लोग हैं। इनमें कई पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं।
जवाहर सरकार ने लिखा है- हम दस वर्षों में गायब हुए 16.11 लाख करोड़ रुपये की तुलना शिक्षा के लिए केंद्र सरकार के बजट से भी कर सकते हैं, जहां कुल व्यय इससे 40% कम था, और स्वास्थ्य के लिए, जहां यह आधे से भी कम था।
जवाहर सरकार लिखते हैं कि इस खोए हुए पैसे की भरपाई के लिए, बैंक हर छोटी 'सेवा' के लिए अधिक से अधिक उपयोगकर्ता शुल्क (यूजर चार्जेज) लेते हैं। अक्सर वो जनता को अस्पष्ट सूचनाओं के जरिये बताते हैं और बहुत सूचनाएं तो गुप्त ही रहती हैं। जनता को मिले हुए लोन की दरें चुपचाप बढ़ जाती हैं। क्योंकि बैंक धोखाधड़ी और धन की हेराफेरी की भरपाई जनता से करना चाहते हैं।
वो कहते हैं कि यहां तक कि अभी संसद के माध्यम से बैंकिंग कानूनों में लाए जा रहे कई संशोधन भी इनसे निपटने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं। बैंकरों को निर्देश दिया गया है कि वे लोन माफ करके "अपना बही खाता साफ रखने" पर ध्यान केंद्रित करें, न कि उन लोगों के पीछे जाएं जिन्होंने अपना (और जमाकर्ताओं का) पैसा व्यवस्थित तरीके से जमा किया है। ऐसे लोगों के लिए कोई वॉर-रूम या केंद्रीय निगरानी सेल नहीं है।
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