भारतीय अर्थव्यवस्था की बदहाली और मंदी की तमाम ख़बरों के बीच एक और बुरी ख़बर है। विश्व आर्थिक फ़ोरम द्वारा तैयार अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा इन्डेक्स में भारत 10 स्थान फिसल कर 68वें स्थान पर आ गया। इस सूची में 141 देश हैं। हालांकि भारत 10 स्थान नीचे गिरा, इस इनडेक्स में भारत के स्कोर में सिर्फ़ 0.7 प्रतिशत की कमी आई है। विश्व आर्थिक फ़ोरम ने यह रिपोर्ट बुधवार शाम जारी की।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भारत सूचना और संचार प्रोद्योगिकी' के मामले में अच्छा काम नहीं कर पाया है। इसी तरह 'कौशल' विकास और 'श्रमिकों की विविधता' के मामले में भी भारत अपनी कमज़ोरियाँ दूर नहीं कर पाया है।
लेकिन डब्लूईएफ़ की इस रिपोर्ट में कुछ मामलों में भारत की तारीफ भी की गई है। यह कहा गया है कि भारत ने 'बाज़ार के आकार', 'भविष्य से जुड़े शासन' और 'शेयरहोल्डरों के शासन' के मामले में प्रगति की है। इसी तरह भारतीय अर्थव्यवस्था में 'अक्षय उर्जा के नियमन' में भी बेहतर काम हुआ है।
लेकिन चिंता की बात यह है कि इस रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन जी-20, ब्रिक्स और दक्षिण एशिया के देशों की तुलना में ख़राब रहा है। जी-20 देशों में भारत काफ़ी नीचे है। यह सिर्फ़ ब्राजील और अर्जेंटीना के ऊपर हैं, जो सूची में क्रमश: 71वें और 83वें स्थान पर हैं। इसी तरह ब्रिक्स देशों में भारत सिर्फ़ ब्राजील के ऊपर है।
ब्रिक्स समूह में ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका हैं। यानी भारत का स्थान दक्षिण अफ्रीका से भी नीचे है। डब्लूईएफ़ की सूची में भारत के नीचे श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान हैं।
डब्लूईएफ़ की यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब तमाम इन्डीकेटर भारतीय अर्थव्यवस्था की बदहाली की कहानी ही कहते हैं। ये आर्थिक इन्डीकेटर यही बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिसल तो रही है, यह मंदी के दौर में दाखिल हो चुकी है। सिर्फ़ जीडीपी वृद्धि दर ही नहीं गिरी है, कोर सेक्टर में भी कमी साफ़ झलकती है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, 8 में से 5 कोर सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ हुआ है, यानी शून्य से भी कम विकास दर देखी गई है। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि इन क्षेत्रों में पहले जितना उत्पादन हुआ था, इस तिमाही में उससे भी कम उत्पादन हुआ।
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