चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर शून्य से 23.9 प्रतिशत नीचे रही है। यह 40 साल का न्यूनतम जीडीपी वृद्धि दर है। इसे निराशाजनक माना जा रहा है, पर आश्चर्यजनक नहीं।
नैशनल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस (एनएसओ) ने इस साल की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून के लिए सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर का एलान कर दिया है। सोमवार की शाम हुए इस एलान के मुताबिक जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट आई है।
एनएसओ साल में चार बार जीडीपी का आकलन करता है, यानी हर तिमाही में जीडीपी का आकलन किया जाता है। हर साल यह सालाना जीडीपी वृद्धि के आँकड़े जारी करता है।
सरकार ने जीडीपी का यह आँकड़ा ऐसे समय जारी किया है जब देश कोरोना और उस वजह से हुए लॉकडाउन की मार झेल रहा है।
कोरोना के पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त हो चुकी थी। अर्थव्यवस्था के तमाम इंडीकेटर यह साफ़ बता रहे था कि अर्थव्यवस्था बुरी हाल में है। उसके बाद लॉकडाउन ने बचीखुची कसर भी पूरी कर दी है।
नैशनल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस से जारी रिपोर्ट के मुताबिक़, पहली तिमाही के दौरान ग्रॉस वैल्यू एडेड यानी जीवीए शून्य से 23.9 प्रतिशत नीचे रही।
- कोर सेक्टर खनन में -23.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जबकि बीते साल यह 4.7 प्रतिशत की विकास दर थी।
- कोर सेक्टर मैन्युफैक्चरिंग में विकास दर में 39.3 प्रतिशत की कमी आ गई।
- एक और कोर सेक्टर कृषि में विकास दर 3.4 प्रतिशत दर्ज की गई।
- कृषि एकमात्र क्षेत्र है, जहां विकास की दर सकारात्मक है।
- व्यापार, होटल, परिवहन और संचार में 47 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
- निर्माण कार्य के क्षेत्र में 50.3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
- बिजली और गैस जैसे कोर सेक्टर में वृद्धि दर 7 प्रतिशत कम हो गई।
कुल मिला कर स्थिति यह है कि मैन्युफ़ैक्चरिंग में 39.3 प्रतिशत, निर्माण में 50.3 प्रतिशत और व्यापार में 47 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस में 10.3 प्रतिशत की कमी देखी गई।
अनपेक्षित नहीं!
यह आकँड़ा अनपेक्षित इसलिए नहीं है कि पहले ही कई एजेन्सियों और यहां तक की रिज़र्व बैंक ने भी कहा था कि जीडीपी में गिरावट तो होगी ही, अर्थव्यवस्था सिकुड़ सकती है यानी शून्य से नीचे जा सकती है।दुनिया की मशहूर प्रबध सलाहकार कंपनी मैंकिजे ने कहा है कि चालू साल में भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 3 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।
मैकिंजे रिपोर्ट!
यह इस पर निर्भर करता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की सरकारी कोशिशें कितनी कारगर होती हैं और उनका क्या नतीजा निकलता है। अगर ऐसा हुआ तो भारत की अर्थव्यवस्था की कमर पूरी तरह से टूट जायेगी और उसके उबरने मे बरसों लग जायेंगे। मैंकिजे ग्लोबल इनीशिएटिव ने 'इंडियाज़ टर्निंग पॉयंट' नाम की रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में बैंकों का 'बैड लोन' यानी जिस क़र्ज़ पर ब्याज न मिल रहे हों या जो पैसे डूब गए हों ऐसे क़र्ज़ में 7 से 14 प्रतिशत की वृद्धि होगी।इसके पहले रिज़र्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-2020 की अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट बढ़ता ही जा रहा है। इसके पटरी पर लौटने की फ़िलहाल कोई गुंजाइश नहीं दिखती है और इसमें अभी समय लगेगा।
रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट
केंद्रीय बैंक ने यह भी माना था कि कोरोना महामारी की वजह से जो आर्थिक स्थिति बिगड़ी, उसकी सबसे ज़्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है जो सबसे अधिक ग़रीब थे।इसके भी पहले जून महीने में भारत आई अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा था कि 2020-2021 के दौरान भारत की जीडीपी 1 प्रतिशत से थोड़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि यह बहुत मजबूत वृद्धि दर नहीं है, पर दूसरे कई देशों में भी ऐसा ही होने की संभावना है।
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