एक दिन पहले खुदरा महंगाई में मामूली कमी आने की ख़बर के बाद अब मंगलवार को थोक महंगाई की झटका देने वाली रिपोर्ट आई है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार ही देश में मई महीने में थोक महंगाई रिकॉर्ड 15.88% पर पहुँच गई है। अप्रैल में यह 15.08% थी। यह लगातार 14वां महीना है जिसमें थोक महंगाई दोहरे अंक में बनी हुई है और लगातार बढ़ती जा रही है।
मई महीने में थोक महंगाई का आँकड़ा 2011-12 के आधार वर्ष के साथ मौजूदा डेटा श्रृंखला में उच्चतम स्तर पर है। पिछले साल मई में थोक मूल्य सूचकांक में मुद्रास्फीति यानी महंगाई 13.11% पर थी।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में महंगाई बढ़ने के लिए खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस, खाद्य वस्तुओं, बुनियादी धातुओं, गैर-खाद्य वस्तुओं, रसायनों व रासायनिक उत्पादों और खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया है।
बता दें कि सरकार द्वारा मई में खुदरा महंगाई पिछले महीने के आठ साल के उच्च स्तर से कम होने की जानकारी दी गई है।
भारत की खुदरा महंगाई मई महीने में वार्षिक आधार पर थोड़ा कम होकर 7.04 प्रतिशत पर आ गई है। यह अप्रैल महीने से मामूली कम है।
अप्रैल में आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर महंगाई पहुँच गई थी। हालाँकि, पिछले महीने से महंगाई दर कम हुई है, लेकिन यह अभी भी आरबीआई द्वारा तय 2-6 फ़ीसदी की सीमा से काफ़ी ज़्यादा है।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, महंगाई चिंता का कारण है क्योंकि महंगाई बढ़ने पर केंद्रीय बैंक सख़्त क़दम उठाता है और इसका असर भी आख़िरकार आम लोगों पर पड़ता है। आरबीआई ने क़ीमतों में बढ़ोतरी को रोकने के लिए पिछले दो महीनों में पहले ही रेपो रेट यानी ब्याज दरों में 90 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। और अब यह बढ़कर 4.9% हो गया है।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस दर में बढ़ोतरी से भारत की आर्थिक सुधार को नुक़सान पहुंचने का जोखिम बढ़ता है, लेकिन महंगाई को तेजी से कम करने में विफल रहने से देश के विकास की संभावनाओं को भी नुक़सान होगा।
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