बहुत हुई महँगाई की मार। आप कुछ कहें इससे पहले रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास ने कह दिया है कि महंगाई का सबसे बुरा दौर अब पीछे छूट चुका है। मौद्रिक नीति के एलान के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में गवर्नर ने बताया कि क्यों रिजर्व बैंक को अब महंगाई के मोर्चे पर कुछ राहत दिखती है। उन्होंने कहा कि कच्चे तेल से लेकर दूसरी तमाम कमोडिटी या ज़रूरी चीज़ों के दामों में लगातार नरमी आ रही है जिसकी वजह से पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ने की रफ्तार काफी कम होती दिख रही है। हालाँकि इसके बावजूद उन्होंने चेताया कि अभी हथियार रखकर चैन से बैठने का वक़्त नहीं आया है। अभी काफ़ी समय तक महंगाई का आँकड़ा चार परसेंट या उससे नीचे पहुंचने के आसार नहीं हैं। रिजर्व बैंक के अनुसार खुदरा महंगाई का आंकड़ा इस तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में 6.6% और अगली तिमाही यानी जनवरी से मार्च तक 5.9% रहने का अनुमान है। सितंबर में मौद्रिक नीति के समय बैंक ने इन दोनों तिमाहियों के लिए महंगाई 6.4% और 5.8% रहने का अनुमान जताया था। और इसी के साथ अब बैंक का कहना है कि चालू वित्तवर्ष में महंगाई का औसत 6.7% रहेगा।

महंगाई कम होती हुई दिख रही है, लेकिन क्या आगे भी ऐसा ही होगा? रिजर्व बैंक के आकलन क्या कहते हैं? यदि मॉनसून ख़राब हुआ तो क्या हाल होगा?
जाहिर है चार परसेंट का लक्ष्य तो दूर, यह तो दो से छह परसेंट के बीच यानी बर्दाश्त की हद में पहुँचता भी नहीं दिख रहा है। इन्फ्लेशन टारगेटिंग या महंगाई पर नज़र रखने की व्यवस्था में रिजर्व बैंक का लक्ष्य है कि वो महंगाई को चार परसेंट पर बनाए रखने की कोशिश करे। इसके ऊपर-नीचे दो परसेंट तक का हेरफेर बर्दाश्त के काबिल माना जाता है। इसलिए रिजर्व बैंक का टॉलरेंस लेवल या सब्र की सीमा दो परसेंट से छह परसेंट के बीच मानी जाती है। दरअसल यही रिजर्व बैंक का मुख्य काम है कि वो महंगाई को लगातार काबू में रखे।