महंगाई तो बढ़ी है! भले ही कोई कहे कि नींबू नहीं खाता। चीनी के दाम बढ़ने पर यदि कोई कहे कि वह चीनी नहीं खाता है तो चाय तो पीता होगा! कटिंग चाय का दाम भी बढ़ गया। दिल्ली में 10 रुपये वाली चाय अब 12 की हो गई। दिल्ली में छोले-कुलचे 35 वाले 40 के हो गए। यदि इससे अहसास न हो तो हरी सब्जियाँ, खाने का तेल ही कोई ख़रीद कर देख ले। यदि ये क़ीमतें भी न जँचें तो सरकार की तकनीकी भाषा वाली मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर ही देख लें। ख़ुदरा महंगाई मार्च में 16 माह के रिकॉर्ड 6.95 फ़ीसदी पर और थोक महंगाई 4 माह के रिकॉर्ड पर 14.55 फ़ीसदी हो चुकी है।
वैसे तो महंगाई किसी भी चीज की हो हर आदमी पर उसका असर पड़ता है। कहा जाता है कि महंगाई की मार सबसे ज़्यादा ग़रीबों और मध्य वर्ग पर ही पड़ता है। और चीजों की महंगाई का सीधे असर भले न हर कोई पर पड़े लेकिन खाद्य महंगाई वह है जिसका असर सीधे हर किसी पर पड़ता है।
महंगाई का ताज़ा असर तो हरी सब्जियों पर दिख रहा है। राष्ट्रीय राजधानी के बाहर की भी बात करें तो पटना की मीठापुर सब्जी मंडी हो या राजेंद्रनगर और मुस्सलहपुर हाट सब्जी मंडी, भिंडी, करेला, परवल, अरबी, शिमला मिर्च जैसी सब्जियाँ औसत रूप से 80-100 रुपये प्रति किलो मिल रही हैं। मुंबई में बांद्रा के पाली मार्केट में एक साधारण नींबू क़रीब 15 रुपये का मिल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे मुंबई भर में सभी सब्जियों के पहले जो औसत दाम 60-80 रुपये थे, वे अब बढ़कर 80-120 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए हैं। दिल्ली में भी सब्जियों के दाम ऐसे ही आसमान छू रहे हैं। दिल्ली का स्ट्रीट फूड भी महंगा हो गया है। दही-भल्ला पहले 40 रुपये का एक प्लेट था वह अब 50 रुपये का एक प्लेट हो गया है। गोलगप्पा 20 रुपये का चार था, लेकिन अब 25 रुपये का चार मिल रहा है। 35 वाले छोले-कुलचे 40 रुपये के हो गए हैं।
कहा जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध के बीच डीजल-पेट्रोल और खाद्य तेल के दाम बढ़ने की वजह से ऐसा हुआ है। जो सरसों तेल 2013 में क़रीब 90-100 रुपये प्रति लीटर था वह मार्च 2023 में क़रीब 200 रुपये प्रति लीटर हो गया। सोयाबीन तेल भी 2013 में 96 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर क़रीब 180 रुपय प्रति लीटर और सूरजमुखी तेल 106 रुपये से 2023 में बढ़कर क़रीब 190-200 रुपये प्रति लीटर हो गया।
खाने के तेल के और भी महंगे होने की आशंका है क्योंकि पाम ऑयल के सबसे बड़े निर्यातक इंडोनेशिया ने पाम ऑयल के निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया है।
ये क़ीमतें जब बढ़ेंगी तब, लेकिन अभी ही देश की कुल महंगाई में खाद्य महंगाई का बहुत बड़ा हाथ है। पिछले भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण ने तेल और फैट की बढ़ती क़ीमतों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया है और इस वित्त वर्ष में खाद्य मुद्रास्फीति की एक प्रमुख वजह है। खाद्य महंगाई में इसका असर कितना है, इसको ऐसे समझा जा सकता है कि केवल 7.8 प्रतिशत हिस्सेदारी होने के बावजूद, तेल और फैट ने देश में खाद्य और पेय पदार्थों की महंगाई में क़रीब 60 प्रतिशत का योगदान दिया।
सरकार ने भी जो महंगाई का आँकड़ा जारी किया है उसमें खाने वाली चीजों की महंगाई काफी ज़्यादा नज़र आती है। मार्च महीने में आलू के थोक आधारित महंगाई दर में जबरदस्त उछाल आया। आलू की महंगाई दर 14.78 फ़ीसदी से बढ़कर 24.62 फ़ीसदी पर जा पहुंची है। कुल मिलाकर मार्च महीने में खाद्य महंगाई दर 8.47 फ़ीसदी से बढ़कर 8.71 फ़ीसदी पर जा पहुंची है।
यही हाल खुदरा महंगाई दर में भी रहा। खुदरा महंगाई बढ़ने के पीछे मुख्य तौर पर दो बड़े कारण हैं। खाद्य सामग्री और तेल के दाम में बढ़ोतरी। मार्च के लिए खाद्य मुद्रास्फीति तेज़ी से बढ़कर 7.68 प्रतिशत हो गई है, जबकि फरवरी 2022 में यह 5.85 प्रतिशत थी। फरवरी की तुलना में मार्च में मांस, मछली, दूध उत्पाद, अनाज आदि की क़ीमतें बढ़ी हैं।
मार्च महीने में कुल खुदरा महंगाई दर 6.95 फ़ीसदी रही है। यह लगातार तीसरा महीना है जब महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा तय सीमा से ऊपर है। आरबीआई ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। यानी मौजूदा महंगाई दर ख़तरे के निशान के पार है।
तो सवाल है कि महंगाई बढ़ने के पीछे वजह क्या है? जानकार महंगाई बढ़ने के पीछे एक कारण यूक्रेन-रूस युद्ध को बता रहे हैं। लेकिन क्या यही एकमात्र कारण है? आईएमएफ़ भारत सहित दुनियाभर की जीडीपी का जब अनुमान लगा रहा था तो इसने अनुमान में कटौती के लिए यूक्रेन युद्ध की वजह से घरेलू इस्तेमाल पर तेल की उच्च क़ीमतों और निजी निवेश के प्रभावित होने का हवाला दिया। विश्व बैंक ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। विश्व बैंक ने कहा था कि भारत में कोरोना महामारी से श्रम बाजार को पूरी तरह उबरने में दिक्कतों और मुद्रास्फीति के दबाव से घरेलू खपत बाधित होगी।
अपनी राय बतायें