केंद्र सरकार जब किसान कानून की खामियाँ स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और कृषि मंत्री कह चुके हैं कि विपक्ष ने उन्हें कृषि कानून में कुछ ग़लत नहीं बताया है, तब नोटबंदी और जीएसटी के फायदों की बात कोई नहीं कर रहा है। यह भी नहीं कहा जा रहा है कि इस सरकार के फ़ैसले ऐसे ही हैं और नोटबंदी, जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था ख़राब हुई है। पर उसे दूर करने की बजाय कृषि कानून ले आया गया और उसकी खामी बताने तथा किसानों के भारी व लंबे विरोध के बावजूद उनकी नहीं सुनी जा रही है।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे है जबकि मध्य प्रदेश में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी और वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी पद के लिए हुई भर्ती परीक्षा विवादों में है। प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) द्वारा आयोजित परीक्षा की आंसरशीट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हुई तो पता चला कि मेरिट में आने वाले सभी अभ्यर्थी राज्य के एक ही ज़िले के हैं। मामले की जाँच कराने के निर्देश दिए हैं।
सरकारी प्रचार
कहने की ज़रूरत नहीं है कि नरेन्द्र मोदी कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर सत्ता में आए, पर उन्होंने भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए कुछ नहीं किया है। सिर्फ अपनी सरकार पर लगने वाले आरोपों की चर्चा नहीं करते हैं। मीडिया ऐसी ख़बरों से डरता है और उन्हें दबाता-छिपाता रहता है। इसीलिए सरकारी दावे और आरोप दोनों को पूरा प्रचार मिलता है। लेकिन स्विटजरलैंड में रखा धन वापस लाने और जनता को 15 लाख रुपए देने की तो छोड़िए, वहाँ रखे पैसे कहाँ गए यही पता नहीं चला।
जीएसटी का प्रचार
सरकार की देश- विरोधी, अर्थव्यवस्था- विरोधी कार्रवाइयों की चर्चा नहीं करना एक बात है और जीएसटी का प्रचार बिल्कुल अलग। आप महसूस करेंगे कि इसमे भी कोई कमी नहीं रहती है। हाल में एक ख़बर आई थी, जीएसटी से वसूली बढ़ी। इससे संबंधित कुछ शीर्षक हैं, कोरोना काल के बाद बढ़ी जीएसटी वसूली एक और शीर्षक है, जीएसटी : ऑल टाइम हाई जीएसटी कलेक्शन से सरकार खुश, व्यापारी मायूस जानें क्यों?
सरकारी आँकड़ों के आधार पर जनवरी में ख़बरें छपी थीं कि दिसंबर 2020 में जीएसटी वसूली सबसे ज्यादा, 1,15,174 करोड़ हुई जो पिछले साल के मुकाबले 12 प्रतिशत और पिछले महीने के मुकाबले 9.7 प्रतिशत ज़्यादा है। इसके बाद जनवरी और फरवरी के भी आँकड़े आ चुके हैं। जनवरी 2021 के दौरान जीएसटी राजस्व संग्रह 1,19,875 लाख करोड़ रुपये रहा था। फरवरी 2021 का राजस्व, फरवरी, 2020 के जीएसटी राजस्व की तुलना में 7 फ़ीसदी अधिक है।
अर्थव्यवस्था पर असर क्यों नहीं दिख रहा?
लेकिन यह जनवरी 2021 के मुकाबले कम है। इस तरह दिसंबर में लगातार चार महीने साल के जीएसटी कलेक्शन बढ़ा बताया और कारण दिया गया कि 2020-21 की पहली तिमाही में कोविड-19 लॉकडाउन के बाद जब अर्थव्यवस्था चौपट हो गई तब से जीएसटी वसूली बढ़ी है। बेशक, यह सही हो सकता है और संभव है, ऐसा ही हो और इसलिये प्रचार किया जा रहा हो। लेकिन अर्थव्यवस्था की अच्छी स्थिति बाज़ार में क्यों नहीं दिख रही है?
अगर ऑटोमोबाइल क्षेत्र की बेहतर स्थिति के आधार पर पूरी अर्थव्यवस्था को बेहतर कहा जा रहा है तो सच यह भी कि लॉकडाउन पूरी तरह ख़त्म नहीं होने के बावजूद आना-जाना लगभग सामान्य हो चुका है जबकि परिवहन व्यवस्था सामान्य नहीं है। शादियाँ हो रही हैं पर ट्रेन सामान्य रूप से नहीं चल रही है, फ्लाइट सामान्य नहीं हैं। परिवार के साथ गाड़ी से चलना सुरक्षित और सस्ता भी है। इसलिए सिर्फ ऑटोमोबाइल बिक्री का आधार पर्याप्त नहीं है।
संवेदनहीन सरकार
किसान आंदोलन के प्रति सरकार के रवैये के बाद यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि यह सरकार जनता की शिकायत सुनेगी या विरोध पर कोई कार्रवाई करेगी। जीएसटी के मामले में मेरा अनुभव यही है, और मेरा मानना है कि छोटे कारोबारियों के लिए जीएसटी झेलने लायक तब हुआ जब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी हार गई।
गुजरात विधानसभा चुनाव में सरकार को व्यापारियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा, तब जाकर नियमों में कुछ ज़रूरी ढील दी गई।
अब उसे सही और फायदेमंद बताने के लिए वसूली बढ़ने को आधार बनाया जा रहा है जबकि ज़बरन वसूली सरकार के लिए कोई मुश्किल नहीं है और यह तरीका कभी भी सही नहीं हो सकता है। अगर जीएसटी बढ़ना ही अर्थव्यवस्था के दुरुस्त का संकेत है तो राज्यों का हिस्सा समय पर क्यों नहीं दिया जाता है? अनुमान है कि 2020-2021 से लेकर 2022-23 की पहली तिमाही तक राज्यों के हिस्से में 7.1 लाख करोड रुपए के भुगतान की कमी हरेगी जबकि जीएसटी क्षतिपूर्ति के तहत संग्रह 2.25 लाख करोड़ ही होना है।
केंद्र सरकार वसूली बढ़ने का ढिढोरा तो पीट रही है पर राज्यों का हिस्सा कम हो रहा है यह नहीं बता रही है। वसूली बढ़ने के दावों पर बात नहीं करने के लिए इतना भर ही कम नहीं है।
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