सरकार ने रिजर्व बैंक से पैसे तो ले लिए लेकिन अब वह उसके राजनीतिक नुक़सान से बचने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है। एफ़डीआई में छूट और 75 मेडिकल कॉलेज खोलने जैसी घोषणाएँ इसी श्रेणी में हैं। रिज़र्व को ख़र्च करने की स्थिति बन जाना निश्चित रूप से सरकार और अर्थव्यवस्था को संभालने वालों की कमज़ोरी बताती है। मीडिया में भले ऐसा नहीं कहा जा रहा है लेकिन सोशल मीडिया में इससे कोई परहेज नहीं है और सरकार के लिए इससे निपटने के उपाय करना बेहद ज़रूरी है। इसीलिए, एक समय एफ़डीआई का विरोध करने वाले नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार तमाम क्षेत्रों में एफ़डीआई की इजाज़त देने के बाद अब 75 नए मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा के साथ एफ़डीआई के नियमों में भी ढील दे रही है। मुख्य रूप से इसका मक़सद यह माहौल बनाना है कि रिज़र्व बैंक के पैसे बुनियादी ज़रूरतों के लिए नहीं हैं। यही नहीं, सरकार बिना कहे यह संदेश देना चाहती है कि उसका काम तो एफ़डीआई (और इसमें दी गई छूट से) से चल जाता।
रिज़र्व बैंक के पैसे मिलने पर भी एफ़डीआई जैसे फ़ैसले क्यों?
- अर्थतंत्र
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- 30 Aug, 2019
सरकार ने रिजर्व बैंक से पैसे तो ले लिए लेकिन अब वह उसके राजनीतिक नुक़सान से बचने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है। यदि ऐसा नहीं है तो एफ़डीआई में छूट, 75 मेडिकल कॉलेज खोलने जैसी घोषणाएँ क्यों?
