फ़ेसबुक, वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम के कई घंटों तक बंद रहने और उससे हुए उसे नुक़सान से कई सवाल खड़े होते हैं। प्रौद्योगिकी की सबसे बड़ी कंपनी भी तकनीकी कारणों से ठप हो सकती है और उसे कुछ घंटों में ही अरबों डॉलर का नुक़सान हो सकता है, यह साफ हो गया।
भारतीय समय के अनुसार, सोमवार की शाम लगभग छह घंटे तक ये तीनों सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म बंद रहे। इस वजह से इनके मालिक मार्क ज़करबर्ग को लगभग सात अरब डॉलर का नुक़सान हुआ।
ब्लूमबर्ग बिलियनेअर्स इनडेक्स के अनुसार, ज़करबर्ग की कुल संपत्ति कम हो कर 121.6 अरब डॉलर हो गयी है। यह कुछ दिन पहले तक 140 अरब डॉलर थी।
इसमें उन्हें विज्ञापन नहीं मिलने से हुआ नुक़सान और शेयर बाज़ार में शेयरों की कीमतें गिरने से हुआ नुक़सान, दोनों ही शामिल हैं।
विवाद
फ़ेसबुक इसके पहले खुर्खियों में रहा है। अमेरिकी अख़बार 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने पिछले दिनों एक ख़बर में कहा था कि इंस्टाग्राम के साथ कई तरह की दिक्क़तें हैं। यह कहा गया था कि 6 जनवरी को कैपिटल हिल्स पर हुई घटना को जिस तरह इंस्टाग्राम पर पेश किया गया, उसका असर युवाओं के मनोविज्ञान पर पड़ा।
फ़ेसबुक का कहना है कि इसकी समस्याएं सिर्फ तकनीक से जुड़ी हुई नहीं हैं, इसके साथ राजनीतिक ध्रुवीकरण का मामला भी है।
फ़ेसबुक के चीफ़ एक्ज़क्यूटिव ने सोमवार के आउटेज पर अपने उपभोक्ताओं से माफी मांग ली है।
इन सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म के ठीक होने के बाद मार्क ज़करबर्ग ने खुद अपने पेज पर पोस्ट कर उपभोक्ताओं से माफ़ी मांगी। उन्होंने लिखा था, "रुकावट के लिए क्षमा करें। हमें पता है कि आप जिन लोगों की परवाह करते हैं, उनसे जुड़े रहने के लिए हमारी सेवाओं पर किस तरह निर्भर हैं।"
हेट स्पीच रोकने में नाकाम?
फ़ेसबुक पहले भी विवादों में रहा है। यह मुख्य रूप से हेट स्पीच को रोकने में नाकामी और राजनीतिक पक्षपात के लिए कई देशों में कई बार चर्चा में रह चुका है।
भारत में इस पर सवाल तब उठे थे जब अमेरिकी अखबारों ने एक के बाद एक कई खबरें छापी थीं। उन ख़बरों में कहा गया था कि फ़ेसबुक ने बीजेपी के एक विधायक के हेट स्पीच को इसलिए नहीं हटाया था कि फेसबुक की एक तत्कालीन अधिकारी ने कहा था कि इससे सरकार से रिश्ते खराब होंगे और इसके कामकाज प्रभावित होंगे।
उसके बाद यह खबर भी छपी थी कि फ़ेसबुक ने बीजेपी नेता के कहने पर कुछ भी पेज हटा दिये थे।
इस तरह के कई आरोप लगे।
बाद में फ़ेसबुक के भारतीय प्रमुख को संसद की स्थायी समिति के सामने भी पेश होने कहा गया था।कुल मिला कर स्थिति यह है कि पहले फ़ेसबुक के राजनीतिक पूर्वाग्रहों और भेदभाव पर चर्चा होती थी और अब इसकी मुनाफ़ाखोरी और तकनीकी ख़ामियों पर भी चर्चा हो रही है।
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