एक रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में तीसरी तिमाही में विकास दर का गिरना तय है। 11 अर्थशास्त्रियों के एक ईटी पोल के अनुसार, भारत की आर्थिक वृद्धि तीसरी तिमाही में औसतन 5.0% तक गिर गई होगी, जो इस वित्तीय वर्ष में सबसे कम होगी। उन्होंने पूर्वानुमान 4.3% से 5.2% तक लगाए थे। पिछले वित्त वर्ष में तीसरी तिमाही में जीडीपी 5.4 फ़ीसदी रही थी।
बहरहाल, मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर की जीडीपी में विकास दर 6.3 फ़ीसदी रही। यह पिछली तिमाही से आधे से भी कम थी। अप्रैल-जून की तिमाही में अर्थव्यवस्था 13.5 फ़ीसदी की दर से बढ़ी थी। दूसरी तिमाही की वृद्धि दर की रफ़्तार कितनी धीमी रही इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले साल यानी 2021-22 की इसी तिमाही में जीडीपी में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी के 5 फ़ीसदी पर रहने के अनुमान को लेकर अर्थशास्त्रियों ने कुछ तथ्य रखे हैं। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधि स्पष्ट रूप से असमान रही। रेटिंग एजेंसी ने दिसंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.1% रहने का अनुमान लगाया है।
सरकार द्वारा 6 जनवरी को जारी किए गए पहले अग्रिम अनुमानों से पता चला है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2023 में 7% की दर से बढ़ने की उम्मीद है। यह अनुमान सरकार के 8-8.5 प्रतिशत की वृद्धि के पहले के पूर्वानुमान की तुलना में बहुत कम है। पिछले वित्त वर्ष में यह जीडीपी वृद्धि दर 8.7 फ़ीसदी रही थी। तो क्या वैश्विक मंदी का असर भारत पर भी बुरा पड़ रहा है? आख़िर किस वजह से जीडीपी वृद्धि दर में यह गिरावट आने का अनुमान है?
आरबीआई ने अगस्त महीने की शुरुआत में ही जीडीपी की पहली तिमाही के आँकड़े आने से पहले कहा था कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगभग 16.2 प्रतिशत होगी। लेकिन वास्तव में वृद्धि दर इससे क़रीब 3 फ़ीसदी प्वाइंट कम ही रही थी।
अर्थशास्त्रियों को साल की आखिरी तिमाही में तेजी की उम्मीद है। सरकार तीसरी तिमाही के जीडीपी आँकड़े और वित्त वर्ष 23 के लिए दूसरा अग्रिम अनुमान 28 फरवरी को जारी करेगी।
बता दें कि दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है और इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यह असर मामूली नहीं है, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देने वाला है। यह मंदी लाने वाला है। यह बात शोधकर्ता ही कह रहे हैं। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, दुनिया की अर्थव्यवस्था 2023 में मंदी की ओर बढ़ रही है।
खुदरा महंगाई जनवरी में फिर से बढ़ गई। यह तीन महीने के उच्च स्तर 6.52 प्रतिशत पर पहुँच गई है। यह दिसंबर महीने में एक साल के निचले स्तर 5.72 प्रतिशत पर आ गई थी। दिसंबर का यह आँकड़ा रिज़र्व बैंक द्वारा तय महंगाई की ऊपरी सीमा से कम था, लेकिन जनवरी में फिर से यह पार कर गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने मार्च 2026 को समाप्त होने वाली पाँच साल की अवधि के लिए खुदरा मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत के मार्जिन के साथ 4 प्रतिशत पर बनाए रखने का लक्ष्य रखा है। यानी सीधे कहें तो महंगाई को 2-6 फ़ीसदी के दायरे में रखने का लक्ष्य है। लेकिन यह लक्ष्य पाया जाता हुआ नहीं दिखता है। नवंबर और दिसंबर 2022 को छोड़ दिया जाए तो खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2022 से आरबीआई के 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा के पार बनी हुई है।
महंगाई और बेरोजगारी 2022 की सबसे बड़ी चिंताएँ थीं जो वो विरासत में 2023 को सौंप गया है। और साथ में सौंप गया है एक ख़तरनाक, लंबी और तकलीफदेह मंदी की आशंका। दुनिया के ज्यादातर अर्थशास्त्री यही कह रहे हैं कि इस साल, खासकर आर्थिक मोर्चे पर, भारी उतार चढ़ाव देखने पड़ेंगे। 2008 की आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी करनेवाले अर्थशास्त्री नूरिएल रुबिनी तो कह चुके हैं कि दुनिया 1970 के दौर जैसी विकट आर्थिक स्थिति की ओर जा रही है।
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