देश के आर्थिक विमर्श में इन दिनों नई हरी पत्तियों की चर्चा अचानक ही शुरू हो गई है। मार्च महीने में लॉकडाउन शुरू होने के बाद अर्थव्यवस्था की जो बेलें सूखने लग गई थीं, उन पर अब यहाँ वहाँ उम्मीद के कुछ कल्ले फूटते दिख रहे हैं। सितंबर महीने के जो आँकड़े हैं, वे भले ही कोई बड़ी उम्मीद न दे रहे हों, राहत तो दे ही रहे हैं। इससे कम से कम यह अनुमान तो लगाया ही जा रहा है कि इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में पूरी अर्थव्यवस्था जिस तरह गोता लगाकर शून्य से 23 प्रतिशत नीचे तक डूबती दिखाई दी थी, इस बार हालात शायद उतने बुरे नहीं होंगे।

यह ज़रूर है कि पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था ने जिस तरह गोता लगाया था, इस बार हालात उसके मुक़ाबले थोड़े सुधरे हुए तो मिलेंगे, लेकिन पहले 5 महीनों में जो झटके लगे हैं, उनके बाद सिर्फ एक सितंबर के बल पर पूरी अर्थव्यवस्था अपने पुराने वैभवकाल में लौट जाएगी, यह उम्मीद बांधना शायद इस महीने के आँकड़ों के साथ ज़्यादती होगी।