अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत 2 नवंबर को 85 डॉलर प्रति बैरल से भी कम था। अब यह 110 डॉलर प्रति बैरल पहुँच गया है। यानी प्रति बैरल क़रीब 25 डॉलर की बढ़ोतरी हुई। यह बढ़ोतरी मोटे तौर पर क़रीब 30 फ़ीसदी है। लेकिन 2 नवंबर के बाद से भारत में पेट्रोल-डीजल की बढ़ोतरी नहीं हुई है। साफ़ है भारतीय तेल कंपनियाँ घाटा सहकर ऐसा कर रही हैं। लेकिन घाटा कब तक सहेंगी? चुनाव तक! क्या इसका मतलब यह नहीं है कि चुनाव बाद पेट्रोल-डीजल महंगा होगा? लेकिन सवाल है कि कितना महंगा होगा?
7 मार्च बाद डीजल-पेट्रोल को महंगा होने से सरकार भी नहीं रोक सकेगी?
- अर्थतंत्र
- |
- 2 Mar, 2022
पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें इस बार शायद इतनी बढ़ें कि आम लोगों की पहुँच से बाहर ही हो जाए! आप ख़ुद ही अंदाजा लगाइए कि क्या हालात होने वाले हैं।

इसे आप ऐसे समझ सकते हैं। फर्ज करें कि दूध की कंपनियाँ गवालों से 50 रुपये लीटर दूध ख़रीदती हैं तो ग्राहकों को 60 रुपये प्रति लीटर बेचती हैं। लेकिन जब गवालों से दूध 65 रुपये प्रति लीटर ख़रीदती हैं तो जाहिर तौर पर किसी नुक़सान से बचने के लिए इस हिसाब से ग्राहकों को क़रीब 78 रुपये प्रति लीटर दूध बेचना पड़ेगा।