‘भारत का मैनचेस्टर’ फटेहाल!
‘भारत का मैनचेस्टर’ कहे जाने वाले और राज्य की औद्योगिक राजधानी के रूप में मशहूर लुधियाना के कारोबारी हलकोंं में पसरा सन्नाटा बहुत कुछ कहता है। जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन क़ानून का पुरजोर विरोध हो रहा है, दरअसल उन्हीं राज्यों के सड़क और रेल मार्ग लुधियाना के उद्योगों के लिए एक तरह से 'कॉरीडोर' का काम करते हैं।
उन राज्यों में तो माल की सप्लाई और कारोबार एकदम बंद हैं ही, भूटान, नेपाल और बांग्लादेश आदि की सप्लाई भी पूरी तरह ठप हो गई है। नतीजतन कारोबारियों की आर्थिक रीढ़ तो टूटी ही है, उनसे जुड़े हजारों कामगारोंं को भी फ़ौरी बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है।
ऑर्डर रद्द, उत्पादन ठप
नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में जारी आक्रमक आंदोलन का सबसे ज़्यादा असर इनमें से कुछ राज्यों में हो रहा है। अब इन राज्यों के मार्ग से माल नहीं जा रहा और पहले से दिए गए ऑर्डर भी रद्द किए जा रहे हैं। लुधियाना और अमृतसर के व्यापारी इसकी पुष्टि करते हैं। लुधियाना के बड़े कारोबारी उपकार सिंह आहूजा कहते हैं :“
जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन क़ानून का हिंसक विरोध हो रहा ,वहाँ स्थिति असामान्य है। इन राज्यों और यहाँ से होकर दूसरे छोटे पड़ोसी देशों में हमारा माल जाता रहा है। लेकिन अब लगभग एक पखवाड़े से सब कुछ बंद है। न माल जा रहा है, न पैसे का भुगतान हो रहा है। पहले से बुक माल का उत्पादन रोक दिया गया है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि स्थिति कब सुधरेगी।
उपकार सिंह आहूजा, व्यापारी
चपेट में कर्मचारी, मजदूर
इसका असर कर्मचारियों और दिहाड़ी मजदूरों पर भी पड़ रहा है। कारीगरों और ढुलाई का काम करने वाले श्रमिकों को काम नहीं मिल रहा है। ज़्यादातर लोग ऐसे हैं, जो दिहाड़ी पर काम करते हैं, लेकिन अब बेकार हैं। मजदूर रोशन लाल ने बताया कि उसके घर की रोटी चलनी मुश्किल हो रही है। जून 84 में अमृतसर के व्यापारिक जगत में ऐसे हालात हुए थे, जब मजदूरों को रोटी के लाले पड़ गए थे और अब वैसा ही सब कुछ है।‘नोटबंदी, जीएसटी, 370 और अब नागरिकता क़ानून!’
लुधियाना और अमृतसर में हर तीसरा कारोबारी यही कहता मिलता है। पहले नोटबंदी, जीएसटी और अब जम्मू- कश्मीर में धारा 370 के निरस्त होने के बाद बंद हुए व्यापार और अब नागरिकता संशोधन विधेयक ने उद्योगपतियों और व्यापारियों को बेज़ार कर दिया है। यूसीपीएम के चेयरमैन डी.एस. चावला कहते हैं कि इन दिनों जो नुक़सान लुधियाना की इंडस्ट्री का हो रहा है, उसकी भरपाई में बहुत समय लगेगा। फोपासिया के अध्यक्ष बदिश जिंदल के अनुसार केंद्र की नीतियाँ और नए-नए कानून आर्थिक रुप से हमें खोखला कर रहे हैं। हमारे साथ लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी जुड़ी हुई है।ग़रीब पर पड़ी मार
लुधियाना के उद्योग-धंधों का तो मंदा हाल है ही, अमृतसर के 80 हज़ार से ज़्यादा परिवार और व्यापारी भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने के चलते आर्थिक दिक्क़तों से परेशान हैं। 17 फरवरी के बाद अटारी आईसीसी के ज़रिए होने वाले कपड़े, सीमेंट, मसालों और मेवोंं का व्यापारिक आदान-प्रदान समूचे तौर पर बंद है।सिर्फ आईसीपी पर ही 3,300 कुली, 2,000 सहायक, 550 क्लियरिंग एजेंट और 6 हज़ार से ज्यादा ट्रांसपोर्टर काम करते थे। उनका धंधा अब छूट गया है। बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है। किश्तें न जमा करवाने पर बैंक और फाइनेंसर उपकरण तक उठा ले गए या उनके मालिकों ने खुद सुपुर्द कर दिए।
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