दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है और इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यह असर मामूली नहीं है, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देने वाला है। यह मंदी लाने वाला है। यह बात शोधकर्ता ही कह रहे हैं। सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, दुनिया की अर्थव्यवस्था 2023 में मंदी की ओर बढ़ रही है। तो सवाल है कि क्या भारत में भी इसका असर वैसा ही होगा जैसा बाक़ी दुनिया में? या फिर भारत हल्के-फुल्के असर से बच जाएगा?
जिस तरह से वैश्विकरण के कारण दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ एक दूसरे जुड़ी हैं या यूँ कहें कि पूरा विश्व एक गाँव की तरह हो गया है, तो एक अर्थव्यवस्था का असर दूसरे पर पड़ना स्वभाविक है। लेकिन, इतना ज़रूर है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था कम तो किसी की ज़्यादा प्रभावित हो सकती है। मिसाल के तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध के असर को देखा जा सकता है जिसकी वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ पिछली तीन तिमाहियों से लड़खड़ा रही हैं।
दुनिया भर में महंगाई और बैंक ब्याज दर के बढ़ने से कई अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती आई है। जिन अर्थव्यवस्थाओं के तेजी से बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही थी उनके अनुमान अब कम किए गए हैं।
पिछली यानी पहली तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार लौट आई थी, लेकिन दूसरी तिमाही में इसके धीमा पड़ने के संकेत मिल गए हैं। इस बार जुलाई-सितंबर यानी दूसरी तिमाही में जीडीपी की विकास दर 6.3 फ़ीसदी रही है। यह पिछली तिमाही से आधे से भी कम है। अप्रैल-जून की तिमाही में अर्थव्यवस्था 13.5 फ़ीसदी की दर से बढ़ी थी। आरबीआई ने अगस्त महीने की शुरुआत में ही जीडीपी की पहली तिमाही के आँकड़े आने से पहले कहा था कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगभग 16.2 प्रतिशत होगी। लेकिन इससे क़रीब 3 फ़ीसदी प्वाइंट कम ही रही।
विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के जीडीपी ग्रोथ रेट का अनुमान 6.9 फीसदी कर दिया है। जब पहली तिमाही का ही आँकड़ा आया था तब जून महीने में विश्व बैंक ने अनुमान 7.5 फीसदी लगाया था। अप्रैल में इसने पूर्वानुमान को 8.7 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया था।
जून महीने में विश्व बैंक ने यह भी कहा था कि 2023-24 में 7.1 प्रतिशत तक धीमी गति से विकास होने की संभावना है। यह रिपोर्ट जब आई थी तब देश में महंगाई तय सीमा से काफ़ी ऊपर थी। तब दुनिया भर के देशों में महंगाई बेहद ज़्यादा थी।
बहरहाल, इसी बीच सेंटर फोर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च यानी सीईबीआर का मौजूदा शोध आया है। इसने आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक से अपना आधार डेटा लिया है और विकास, मुद्रास्फीति और विनिमय दरों के पूर्वानुमान के लिए एक आंतरिक मॉडल का उपयोग किया है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, सीईबीआर में निदेशक केए डेनियल नेउफेल्ड ने कहा, 'इस बात की संभावना है कि उच्च मुद्रास्फीति के जवाब में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप विश्व अर्थव्यवस्था को अगले साल मंदी का सामना करना पड़ेगा।'
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रिपोर्ट में कहा गया है कि, 'मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई अभी जीती नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि केंद्रीय बैंकर 2023 में आर्थिक चुनौतियों के बावजूद अपनी नीति पर टिके रहेंगे। मुद्रास्फीति को और अधिक सही स्तर पर लाने के लिए कई वर्षों तक ख़राब विकास दर से गुजरना होगा।'
अगले 15 वषों में क्या होगा?
2023 में मंदी की आशंकाओं के बीच अनुमान लगाया गया है कि 2037 तक विश्व सकल घरेलू उत्पाद दोगुना हो जाएगा क्योंकि विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अमीरों के बराबर हो जाएंगी। पहले जहाँ 2030 तक चीन को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान लगाया गया था, वह अब संभव होता नहीं दिख रहा है। कहा जा रहा है कि कम से कम 2036 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका से आगे निकल सकता है।
ऐसा इसलिए है कि चीन कोरोना से प्रभावित है, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद चीन का पश्चिमी देशों के साथ व्यापार प्रभावित हुआ है।
सीईबीआर ने भी कहा है कि इस कारण लगभग निश्चित रूप से काफी तेजी से विश्व में मंदी आएगी। इसने यह भी कहा है कि लेकिन चीन को नुकसान कई गुना अधिक होगा।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार सीईबीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत 2035 में 10 ट्रिलियन डॉलर की और 2032 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
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