नई संसद के दोनों सदनों में केंद्र और विपक्ष के सदस्य नारी शक्ति वंदन अधिनियम या महिला आरक्षण विधेयक पर तीखी नोकझोंक करने को बुधवार को तैयार हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे मंगलवार को लोकसभा में पेश किया था। सरकार का वादा है कि बुधवार से वो इस पर बाकायदा बहस कराएगी। .
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संसद में बुधवार की बहस का मुद्दा ओबीसी वर्ग की महिलाओं को इसमें आरक्षण नहीं देने का हो सकता है। सपा और आरजेडी ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया है और अब कांग्रेस भी इस मांग में शामिल हो सकती है। दूसरा मुद्दा एससी वर्ग की आरक्षित सीटों को लेकर है। नए विधेयक में व्यवस्था है कि एससी/एसटी का जो कोटा है, उस समुदाय की महिलाओं को उसी में से आरक्षण मिलेगा। इससे पुरुषों का कोटा कम हो जाएगा। इसीलिए बसपा अध्यक्ष और अन्य संगठन एससी/एसटी महिलाओं का कोटा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई या 33% सीटों की गारंटी देता है। इसे जब भी लागू किया जाएगा तो यह शुरुआत के 15 वर्षों तक प्रभावी रहेगा। संसद इसे आगे बढ़ा सकती है। जो खास बात है वो यह कि इसके कानून बनने के बाद परिसीमन प्रक्रिया और जनगणना पूरी होते ही महिला आरक्षण लागू कर दिया जाएगा। यानी महिलाओं को आरक्षण के इस क्रांतिकारी कदम का कई वर्षों तक और इंतजार करना होगा।
जो नया बिल पेश किया गया है, वो 128वां संशोधन विधेयक, 2023 है। इसमें तीन नए अनुच्छेद और एक नया खंड पेश किया गया है। नए 239एए खंड में कहा गया है कि अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरी जाने वाली कुल सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये सीटें लोकसभा और विधानसभा में आरक्षित होंगी। राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों में ऐसा कोई कोटा नहीं होगा।
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