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मौलाना साद को गिरफ़्तार क्यों नहीं कर रही दिल्ली पुलिस?

तब्लीग़ी जमात के मुखिया मौलाना साद के ख़िलाफ़ क़ानूनी शिकंजा लगातार कसता जा रहा है। हर तीसरे-चौथे दिन दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से ऐसी ख़बर आती है। कई टीवी चैनल प्रमुखता से इस ख़बर को चलाते हैं। अगले दिन कई अख़बार इस ख़बर को पहले पेज पर बड़ी हेडलाइंस के साथ छापते हैं। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि इनमें से कोई टीवी चैनल और अख़बार यह सवाल नहीं पूछता कि अगर पुलिस को मौलाना साद के ख़िलाफ़ इतने सुबूत मिल गए हैं तो फिर वह उन्हें गिरफ़्तार क्यों नहीं करती?

सोमवार को जब देश में ईद मनाई जा रही थी, तब दोपहर बाद अचानक कई टीवी चैनलों पर ख़बर चली कि मौलाना साद पर क़ानूनी शिकंजा और कस गया है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मौलाना साद के बड़े बेटे के बैंक के काग़ज़ात और ज़रूरी दस्तावेज़ ज़ब्त कर लिए हैं। 

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जांच से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पुलिस ने साद के बड़े बेटे सईद के ज़रूरी दस्तावेज़ अपने पास रख लिए हैं, ताकि वह विदेश न जा सकें। बताया जाता है कि सईद मरकज़ के प्रबंधन में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा पुलिस ने प्रबंधन से जुड़े साद के पांच प्रमुख सहयोगियों के पासपोर्ट पहले ही ज़ब्त कर लिए थे।

पुलिस के दावों में अंतर

ठीक इसके विपरीत दिल्ली पुलिस के सूत्र यह दावा भी करते हैं कि पुलिस को अभी तक मौलाना साद के ठिकाने और उनके स्वास्थ्य के विषय में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है। जबकि इसके उलट कुछ दिन पहले दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने दावा किया था कि मौलाना साद दिल्ली के पश्चिमी ज़ाकिर नगर में अपने घर पर ही रह रहे हैं। वहीं पर वह अपने वकीलों से मिलकर क़ानूनी सलाह से रहे हैं।

दिल्ली पुलिस ने मौलाना को गिरफ़्तार नहीं करने के पीछे सफ़ाई दी थी कि ज़ाकिर नगर इलाक़े के लगातार कोरोना हॉट स्पॉट बने रहने की वजह से वह उन्हें गिरफ़्तार नहीं कर रही है। दिल्ली पुलिस के सूत्रों का नया दावा अपने पुराने दावों से बिल्कुल उलट है।

मुक़दमा कुछ और जांच कुछ 

दरअसल, मौलाना साद के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने से लेकर उनके ख़िलाफ़ जांच और गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस की कहानी में कई उलझाव हैं। ग़ौरतलब है कि मौलाना साद और उनके नज़दीकी छह लोगों के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने ग़ैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज किया था। लेकिन उनके ख़िलाफ़ जांच विदेशों से मिलने वाले चंदे, उनके पास बेहिसाब दौलत, हवाला में उनकी और उनके बेटों की भूमिका की हो रही है। अब यह ख़बरें भी आ रहीं है कि तब्लीग़ी जमात के तार आंतकवाद से जुड़े होने के मुद्दे पर भी जांच होगी। इसकी जांच एनआईए को सौंपी जा सकती है। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट 28 मई को फ़ैसला सुना सकती है। 

ख़ामोश क्यों है दिल्ली पुलिस?

मौलाना साद पर बुनियादी तौर पर बग़ैर इज़ाज़त के उस वक़्त मरकज़ में कई हज़ार लोगों को इकट्ठा करने का आरोप है, जब दिल्ली में 50 से ज़्यादा लोगों के एक साथ जमा होने पर रोक लग चुकी थी। अब यह सवाल उठता है कि क्या मरकज़ में 13-15 मार्च को हुआ सालाना कार्यक्रम ग़ैर-क़ानूनी था? अगर यह ग़ैर क़ानूनी था तो इसे आयोजित करने पर मौलाना के ख़िलाफ़ क़ानूनी तौर पर क्या कार्रवाई होनी चाहिए? क्या मौलाना साद ने जमात से जुड़े लोगों को देश भर में कोरोना फैलाने के लिए उकसाया? इन बिंदुओं पर जांच में कितनी सच्चाई पाई गई है? इस पर दिल्ली पुलिस के अधिकारी और सूत्र पूरी तरह ख़ामोश हैं।   

क़रीब एक महीने पहले मौलाना साद की तरफ़ से यह दावा किया गया था कि उन्होंने अपना कोरोना टेस्ट करा लिया है और पुलिस को इसकी रिपोर्ट सौंप दी गई है। लेकिन पुलिस ने इस दावे को ख़ारिज कर दिया था। तब पुलिस ने कहा था किसी निजी अस्पताल में कराई गई जांच को वह मंज़ूर नहीं करेगी। मौलाना को एम्स में कोरोना की जांच करानी होगी। 

इस बीच, एक दिन मौलाना के आत्मसमर्पण करने की भी ख़बरें ज़ोर-शोर से चलीं। मौलाना के वकीलों ने भी इस बात की पुष्टि की थी मौलाना आज-कल में आत्म समर्पण कर सकते हैं। लेकिन वह बात भी आई-गई हो गई।

क़रीबियों ने खोला कच्चा चिट्ठा!

दिल्ली पुलिस ने यूपी पुलिस के साथ मिलकर मौलाना के कांधला स्थित फ़ॉर्म हाउस पर छापेमारी करके बड़ी संख्या में प्रापर्टी के दस्तावेज़ और उनके कई तरह की ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों में शामिल होने के सबूत मिलने का दावा किया है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में पुलिस सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि मौलाना के क़रीबियों ने पुलिस की पूछताछ में मौलाना का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया है। उनके बेटों के ख़िलाफ़ भी पुलिस कड़ी कार्रवाई कर रही है। 

अब तो ख़बरें ये भी आ रहीं हैं कि पूरा मरकज़ ही ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से बनाया गया है। यहां तक कहा जा रहा है कि मरकज़ की इमारत को ध्वस्त किया जा सकता है।

पुलिस की क़ाबिलियत और नीयत पर सवाल

इन सब ख़बरों को देख कर लगता है कि मामला काफ़ी गंभीर है। ऐसे में यह सवाल खड़ा होना लाज़िमी है कि पुलिस मौलाना साद को गिरफ़्तार क्यों नहीं कर रही है? क्या मौलाना साद सचमुच किसी ऐसी जगह छिपे हुए हैं, जहां क़ानून के हाथ नहीं पहुंच पा रहे हैं या फिर पुलिस को उनके ठिकाने का पता है और वह जान बूझकर उन्हें गिरफ़्तार नहीं कर रही है। दोनों ही स्थितियों में दिल्ली पुलिस की क़ाबिलियत और नीयत, दोनों पर गंभीर सवाल उठते हैं। 

सबसे अहम सवाल यह है कि जब दिल्ली पुलिस लॉकडाउन के दौरान जामिया के छात्रों आसिफ़ इक़बाल, सफूरा जरगर, मीरान हैदर को गिरफ़्तार कर सकती है तो फिर मौलाना साद को क्यों नहीं?

ज़फ़रुल इसलाम की गिरफ़्तारी की जल्दी

बता दें कि क़रीब महीना भर पहले दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन ज़फ़रुल इसलाम के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज हुआ था। मुक़दमा दर्ज होने के कुछ दिन बाद दिल्ली पुलिस की टीम उन्हें गिरफ़्तार करने उनके घर पहुंच गई थी और वह भी ऐन इफ़्तार के वक़्त। ये अलग बात है कि वहां जमा हुई भीड़ के द्वारा गिरफ़्तारी का वॉरंट दिखाने की मांग करने पर दिल्ली पुलिस की टीम को बैरंग लौटना पड़ा था। 

हैरानी की बात है कि मौलाना साद के ख़िलाफ़ तमाम सबूतों के दावों के बावजूद दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने की एक बार भी ऐसी तत्परता नहीं दिखाई।

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ख़बरें प्लांट करवा रही पुलिस?

अगर मौलाना फ़रार हैं तो फिर यह सवाल उठता है कि चंद दिनों में ही शरजील इमाम को ढूंढ लाने वाली दिल्ली पुलिस क़रीब दो महीने में मौलाना साद को क्यों नहीं ढूंढ पाई। उसकी पैनी निगरानी के बीच मौलाना फ़रार कैसे हो गए। कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली पुलिस के पास मौलाना को गिरफ़्तार करने का कोई आधार ही नहीं है और बस वह यूं ही आए दिन मीडिया में ख़बरें प्लांट करके मौलाना की छवि ख़राब कर रही है। 

मौलाना के वकीलों का दावा है कि मौलाना पहले दिन से ही ज़ाकिर नगर वेस्ट स्थित अपने घर पर ही हैं और दिल्ली पुलिस को यह बात अच्छी तरह पता है।

कोर्ट में होगी पुलिस की किरकिरी!

दरअसल, मौलाना को गिरफ़्तार करने को लेकर दिल्ली पुलिस शुरू से ही दुविधा में है। मौलाना को क़ानूनी मदद दे रहे वकीलों का दावा है कि दिल्ली पुलिस अगर मौलाना को गिरफ़्तार करती है तो उन्हें कोर्ट में पेश करना पड़ेगा। कोर्ट में पुलिस मौलाना पर लगे आरोप साबित नहीं कर पाएगी तो उसकी किरकिरी होगी। इसलिये दिल्ली पुलिस कभी हवाला के फर्जी केस बनाकर प्रवर्तन निदेशालय से जांच करा रही है तो कभी बैंकों का लेन-देन खंगाल रही है। जबकि इनका मूल एफ़आईआर से कोई ताल्लुक़ नहीं है। 

जिस ऑडियो क्लिप के आधार पर मौलाना साद के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है, वह क्लिप ही संदेह के घेरे में है।

कहां है फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट?

अंग्रेज़ी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने हाल ही में दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से ख़बर छापी है कि पुलिस को मौलाना और उनके बेटों से बरामद किए गए लैपटॉप से मौलाना की बहुत सारी ऑडियो क्लिप मिली हैं लेकिन वायरल ऑडियो क्लिप नहीं मिली। पुलिस को शक है कि वह क्लिप कई छोटी-छोटी क्लिप को जोड़कर बनाई गई हो सकती है। पुलिस ने उसे फ़ॉरेंसिक जांच के लिए भेजा है। ताज्जुब की बात यह है कि अभी तक फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट क्यों नहीं आई? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस रिपोर्ट छिपा रही हो। 

मीडिया को टीआरपी दे रही पुलिस!

ग़ौरतलब है कि दिल्ली पुलिस तब्लीग़ी जमात का संबंध आतंकवाद से भी जोड़ने की कोशिश कर रही है। जमात का काम 170 देशों में फैला हुआ है। लेकिन कभी भी किसी भी देश में तब्लीग़ी जमात से जुड़े किसी शख़्स का ताल्लुक किसी आतंकी संगठन के साथ नहीं पाया गया है। इसे देखते हुए दिल्ली पुलिस का यह क़दम अतिवादी लगता है। 

ऐसा लगता है कि मौलाना को गिरफ़्तार नहीं करके और सूत्रों के हवाले से उनके ख़िलाफ़ ख़बरें प्लांट कराके दिल्ली पुलिस मीडिया को टीआरपी का मसाला मुहैया कर रही है ताकि जनता के बीच कोरोना को लेकर जमात और मौलाना साद की नकारात्मक छवि को लगातार बनाए रखा जा सके।  

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यूसुफ़ अंसारी
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