यहां एक खेल DOGE, ट्रम्प और एलन मस्क ने यह खेला कि आगे की जानकारी छिपा ली गई। यानी भारत में कौन सा संगठन, राजनीतिक दल या संस्था इन अनुदानों को पाने वाली थी। विदेश से कोई भी पैसा बिना सरकार की जानकारी के नहीं आ सकता है। यूएसएड यह पैसा जिन माध्यमों से भेजती है, वो सब सरकार, आरबीआई की जानकारी में होता है। भारत में मोदी सरकार ने तमाम एनजीओ के एफसीआर लाइसेंस कैंसल कर दिये हैं। यह लाइसेंस होने पर ही कोई एनजीओ विदेश से पैसा ले सकता है। भारत में अब बीजेपी समर्थक तमाम एनजीओ के पास एफसीआरए लाइसेंस हैं।
- अमेरिकी सरकार का खर्च डेटा बता रहा है कि 2008 के बाद से USAID ने भारत में CEPPS के किसी भी प्रोजेक्ट की फंडिंग नहीं की है। अमेरिका में हर केंद्रीय अनुदान उसके खर्च डेटा में साफ साफ लिखा जाता है कि उसे किस देश में किस क्षेत्र में खर्च किया जाना है। इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल बता रही है कि 2008 के बाद इस तरह का कोई फंड भारत नहीं भेजा गया है।
- बांग्लादेश के लिए यह फंड जुलाई 2025 तक तीन साल के लिए चलने वाला था। एलन मस्क के विभाग ने इसी को रोका है। $21 मिलियन में से $13.4 मिलियन पहले ही बांग्लादेश में जनवरी 2024 के आम चुनाव से पहले छात्रों के बीच "राजनीतिक और नागरिक जुड़ाव" के लिए खर्च किए जा चुके हैं, और अन्य कार्यक्रमों के लिए भी इस्तेमाल किए गए हैं।
दिसंबर 2024 में सोशल मीडिया पर ढाका स्थित USAID की राजनीतिक प्रक्रिया सलाहकार ने वाशिंगटन में नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट के कार्यालय की यात्रा के दौरान इस अनुदान की पुष्टि की। वहां उन्होंने कहा: "USAID-वित्त पोषित $21 मिलियन CEPPS/नागरिक प्रोजेक्ट... का मैं प्रबंधन करता हूँ।"
ट्रम्प ने क्या झूठ बोला
बुधवार (19 फरवरी) को राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने "अनुमान लगाया" कि पिछला प्रशासन (बाइडेन) "भारत में किसी और को चुनाव जीतने में मदद करने" की कोशिश कर रहा था, जिसमें $21 मिलियन का अनुदान "चुनाव" के लिए दिया गया था। ट्रम्प ने मियामी में एक कार्यक्रम में कहा: "भारत में चुनाव के लिए हमें $21 मिलियन क्यों खर्च करने की जरूरत है? मुझे लगता है कि वे किसी और को चुनाव जीतने में मदद करने की कोशिश कर रहे थे।" फिर उन्होंने जोड़ा: "हमें भारत सरकार को बताना चाहिए।"ट्रम्प ने यह नहीं बताया कि इन फंड्स का वितरण कब हुआ था। राष्ट्रपति ने अपने दावों के लिए कोई सबूत नहीं पेश किया। ट्रम्प की टिप्पणी तब आई, जब उन्होंने अपने प्रशासन के फैसले का बचाव किया था। जिसमें USAID द्वारा भारत में "चुनाव" के लिए दिए जाने वाले फंड्स को रद्द कर दिया गया था।
भाजपा का दावा
ट्रम्प, एलन मस्क के विभाग द्वारा भारत के फंड के संबंध में फैलाये गये झूठ को बीजेपी ने तेजी से पकड़ा और कांग्रेस पर हमला बोला। गुरुवार को, बीजेपी ने दावा किया कि ट्रम्प की टिप्पणी से "पुष्टि" हो गई है कि भारतीय चुनावी प्रक्रियाओं में विदेशी हस्तक्षेप की कोशिश की गई थी। बीजेपी आईटी सेल में काम करने वाले अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर लिखा: "ट्रंप का दावा प्रधानमंत्री मोदी के 2024 के अभियान के दौरान किए गए दावे की पुष्टि करता है कि विदेशी शक्तियाँ उन्हें सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रही थीं...।" मालवीय ने दावा किया था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने "भारत के रणनीतिक और जियोपॉलिटिक्स हितों को कमजोर करने के लिए ग्लोबल नेटवर्कों के साथ गठजोड़ किया है, जो विदेशी एजेंसियों का ही हिस्सा है।"“
कांग्रेस ने ट्रम्प के बयान को "बेतुका" करार दिया। कांग्रेस ने मोदी सरकार से USAID के भारत में सरकारी और एनडीओ की फंडिंग करने के बारे में एक व्हाइट पेपर मांगा। भारत सरकार ने अभी तक इन आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। कांग्रेस ने शुक्रवार को भी बीजेपी को इस पर घेरा। उसके तमाम नेता बीजेपी से अपने झूठ पर माफी मांगने की बात कह रहे हैं। बीजेपी भी हैरान और परेशान लग रही है। वो भी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट का खंडन नहीं कर सकी है।
सरकार करा सकती है जांच
मोदी सरकार भारतीय चुनावों में संभावित विदेशी हस्तक्षेप की जांच करा सकती है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि क्या इस तरह की विदेशी फंडिंग ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। इसे जांच के दायरे में रखा जायेगा। खास बात यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस मामले की जांच की मांग की है। बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी ने एक्स पर लिखा है कि वीना रेड्डी को 2021 में USAID के भारतीय मिशन के प्रमुख के रूप में भारत भेजा गया था। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद (शायद उनका मतदाता मतदान मिशन पूरा हो गया), वह अमेरिका लौट आईं। अफसोस की बात है। जांच एजेंसियां उनसे पूछ सकती थीं कि मतदाता मतदान अभियान के लिए यह पैसा किसने प्राप्त किया।”
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