सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानूनों की वैधता की जाँच करेगा। कोर्ट ने इस पर दोनों राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट का यह फ़ैसला ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण क़ानून के ख़िलाफ़ दायर कई याचिकाओं पर आया है। इस क़ानून के आने से पहले ही इस पर विवाद होता रहा है। इस क़ानून को भारत के संवैधानिक प्रावधानों के ख़िलाफ़ बताया जाता रहा है।
सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं और इस मामले में चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करने को अनिच्छुक था और इसने याचिकाकर्ताओं को संबंधित हाई कोर्ट जाने की सलाह दी थी।
बता दें कि यह वही क़ानून है जिसको 'लव जिहाद' क़ानून कहकर आलोचना की जा रही है। यह इसलिए कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक नवंबर को 'लव जिहाद' का ज़िक्र करते हुए कहा था कि जो कोई भी हमारी बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा उसकी 'राम नाम सत्य है' की यात्रा अब निकलने वाली है। उनके इस बयान के क़रीब महीने भर के अंदर योगी सरकार ग़ैर क़ानूनी धर्मांतरण पर अध्यादेश ले आई। इस क़ानून को ही 'लव जिहाद' से जोड़कर देखा जा रहा है।
वैसे, धर्मांतरण पर हाई कोर्ट के फ़ैसले बीजेपी सरकारों द्वारा लाए जा रहे ऐसे क़ानूनों के ख़िलाफ़ ही हैं।
हाल ही में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि यदि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह में कोई महिला अपना धर्म बदल कर दूसरा धर्म अपना लेती है और उस धर्म को मानने वाले से विवाह कर लेती है तो किसी अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
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'मनपसंद व्यक्ति से शादी का अधिकार'
इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा था कि धर्म की परवाह किए बग़ैर मनपसंद व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार किसी भी नागरिक के जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का ज़रूरी हिस्सा है। संविधान जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इसी तरह एक दूसरे मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी कहा था कि किसी व्यक्ति का मनपसंद व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान देता है।
केरल हाई कोर्ट ने तो एक निर्णय में कहा था कि अलग-अलग धर्मों के लोगों के विवाह को 'लव-जिहाद' नहीं मानना चाहिए, बल्कि इस तरह के विवाहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अदालत के फ़ैसले से अलग जिस 'लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है, वह दरअसल बहुत ही विवादास्पद शब्द है। इसको लेकर सरकारी तौर पर ऐसी कोई रिपोर्ट या आँकड़ा नहीं है जिससे इसके बारे में कोई पुष्ट बात कही जा सके। सरकार ने फ़रवरी में संसद को बताया था कि इस शब्द को मौजूदा क़ानूनों के तहत परिभाषित नहीं किया गया और किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था। लेकिन अधिकतर दक्षिणपंथी और ट्रोल इन शब्दों के माध्यम से यह बताने की कोशिश करते रहे हैं कि मुसलिम एक साज़िश के तहत हिंदू लड़कियों को फँसा लेते हैं, उनसे शादी करते हैं और फिर धर्म परिवर्तन करा लेते हैं।
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