कोरोना का नया स्ट्रेन या नये क़िस्म का कोरोना कितना घातक है? ब्रिटेन में इसकी ख़बर आने पर दुनिया भर में चिंता क्यों बढ़ गई है? क्या यह सिर्फ़ ब्रिटेन में ही है और क्या इस नये क़िस्म के कोरोना पर वैक्सीन कारगर होगी? ऐसे ही सवाल हैं जिनके जवाब उन लोगों की चिंताओं को कुछ हद तक कम कर सकते हैं जो नये क़िस्म के कोरोना के बाद से तनाव में हैं।
नये क़िस्म का कोरोना कहाँ-कहाँ फैला है, इसका असर क्या है, ऐसे सवालों से पहले यह जान लें कि आख़िर नया स्ट्रेन या नया क़िस्म का कोरोना है क्या।
कोरोना एक वायरस है। वायरस यानी ऐसी चीज जो न तो जीवित है और न ही मृत। जब यह किसी जीव के संपर्क में आता है तो सक्रिय हो जाता है। यानी बिना किसी जीव के संपर्क में आए यह एक मुर्दे के समान है और यह ख़ुद को नहीं बढ़ा सकता है।
जब वायरस किसी जीव में या यूँ कह लें कि इंसान के संपर्क में आता है तो यह सक्रिए हो जाता है। फिर यह ख़ुद की कॉपी यानी नकल कर संख्या बढ़ाना शुरू कर देता है। नकल करने की इस प्रक्रिया में वायरस हमेशा बिल्कुल पहले की तरह अपनी नकल नहीं कर पाता है और कई बार उस प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ियाँ रह जाती हैं। उन कुछ वायरसों में ऐसी गड़बड़ियाँ होने के आसार बहुत कम होते हैं जिनमें अंदुरुनी मेकनिज़्म मज़बूत होते हैं। लेकिन RNA वाले वायरस में ऐसा मेकनिज़्म नहीं होता है और इस कारण नये क़िस्म का वायरस बन जाता है। यानी वायरस ख़ुद को म्यूटेट कर लेता है। इसका मतलब है कि पहले की अपनी विशेषता में बदलाव कर लेता है। कोरोना वायरस भी RNA वायरस है।
हालाँकि, कोरोना की इस नयी क़िस्म यानी म्यूटेशन वाले कोरोना के इस नये रूप के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन अभी तक जो जानकारी है उसके आधार पर कहा जा रहा है कि यह 70 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलता है। यह आँकड़ा ब्रिटेन की सिर्फ़ एक लैब में एक्सपेरिमेंट के आधार पर तैयार किया गया है। मॉल्यूक्यूलर बायोलॉजिस्ट और फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन डॉक्टर्स के अध्यक्ष डॉ. अली नूरी ने भी ट्वीट कर इस नये क़िस्म के कोरोना को समझाया है।
1/📌The UK #SARSCoV2 variant reported to be 70% more transmissible harbors a set of mutations in the Spike protein––the part of the virus that touches the human ACE2 receptor and allows the virus entry into our cells. One mutation, N501Y, allows Spike to bind ACE2 more tightly🧵 pic.twitter.com/pwmdwfntRh
— Dr. Ali Nouri (@AliNouriPhD) December 20, 2020
ब्रिटेन अकेला देश नहीं है जहाँ म्यूटेशन वाले कोरोना का नया रूप सामने आया है। डेनमार्क, जिब्राल्टर, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इटली में भी यह नये क़िस्म का वायरस मिला है।
नये क़िस्म के कोरोना से संक्रमित ऑस्ट्रेलिया और इटली के मरीज़ों के बारे में कहा जा रहा है कि वे ब्रिटेन से लौटे थे। इसी कारण दुनिया के कई देशों ने ब्रिटेन की अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं। हालाँकि डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि सिर्फ़ ब्रिटेन ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में लोग नये क़िस्म के कोरोना से संक्रमित हो चुके होंगे।
ब्रिटेन में जो नये क़िस्म का कोरोना का रूप दिखा है उसमें कहा जा रहा है कि 20 से ज़्यादा म्यूटेशन हैं। इनमें से 8 म्यूटेशन उस जीन से जुड़े हैं जो स्पाइक प्रोटीन के लिए ज़िम्मेदार हैं। बता दें कि इसी स्पाइक प्रोटीन को केंद्र में रखकर फाइज़र और मॉडर्ना वैक्सीन तैयार की गई है। इन वैक्सीन को इस तरह तैयार किया गया है कि यह शरीर के इम्युन सिस्टम यानी प्रतिरक्षा को स्पाइक प्रोटीन को पहचानने के काबिल बनाती है और फिर एंटीबॉडीज बनाती है। यही एंटीबॉडीज शरीर के सेल को संक्रमित करने से बचाती है। सेल किसी जीव का सबसे छोटा इकाई है और अरबों-खरबों सेल से ही पूरा शरीर बना होता है। यानी आसान शब्दों में कहें तो एंटीबॉडीज़ शरीर में संक्रमण को फैलने से रोकती है।
लेकिन क्या होगा जब म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन में ही बदलाव ला दे? ऐसे में क्या वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन को पहचान पाएगी और एंटीबॉडीज बना पाएगी?
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा होने के बावजूद ये वैक्सीन प्रभावी होंगी। ऐसा इसलिए कि वे मानते हैं कि कोरोना के म्यूटेशन में इतना आमूलचूल बदलाव नहीं आया है कि वैक्सीन इस पर असर नहीं करे।
वायरस म्यूटेशन के ज़रिए अक्सर इम्युनिटी, एंटीबॉडीज या वैक्सीन से बचने का रास्ता ढूंढ लेती हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में वर्षों लगते हैं। जब कोई भी वायरस इतना बदल जाता है कि वह प्रभावी नहीं रहे तो इस वजह से वैक्सीन में भी थोड़े-बहुत बदलाव करने होते हैं जिससे कि वे प्रभावी बने रहें। इसमें सबसे बेहतरीन उदाहरण मौसमी फ्लू वायरस का है। इंनफ्लूएंजा वायरस में अक्सर बदलाव आता रहता है यानी नये क़िस्म का वायरस आता रहता है, लेकिन इसमें भी 5-7 साल लगते हैं जब वैक्सीन में बदलाव करने की ज़रूरत होती है।
अभी तक जो विशेषज्ञों ने राय दी है उसमें यह भी कहा जा रहा है कि न सिर्फ़ फाइजर व मॉडर्ना, बल्कि भारत में बन रही वैक्सीन भी कोरोना के ख़िलाफ़ कारगर होगी। हालाँकि, अभी न तो किसी लैब में यह तथ्य साबित हुआ है और न ही इस पर शोध हुआ है, लेकिन शुरुआती जानकारी के आधार पर विशेषज्ञ यही मानते हैं कि वैक्सीन प्रभावी रहेगी और इसमें अभी बदलाव करने की ज़रूरत नहीं होगी। यानी कोरोना के नये क़िस्म से ज़्यादा चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है!
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