किसानों के प्रदर्शन के बारे में जो बात सरकार के समर्थक सोशल मीडिया पर या छुटभैये नेता इधर उधर बोलते रहे थे वही बात अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कही है। किसानों के प्रदर्शन में खालिस्तानियों का हाथ होने के आरोप लगाए हैं। सरकार की तरफ़ से भी आज सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि किसानों के प्रदर्शन में खालिस्तानियों की घुसपैठ है। यह पहली बार है कि सरकार की तरफ़ से आधिकारिक तौर पर इस तरह का बयान आया है।
जैसे ही सरकार की तरफ़ से एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यह बयान दिया, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हलफनामा पेश करने को कहा।
खालिस्तान का ज़िक्र तब आया जब सुप्रीम कोर्ट में कृषि क़ानूनों पर मंगलवार को सुनवाई हो रही थी। सुनवाई के दौरान विवादास्पद कृषि क़ानून 2020 के ख़िलाफ़ लगभग डेढ़ महीने से चल रहे किसान आन्दोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए तीनों कृषि क़ानूनों पर रोक लगा दी है। अगले आदेश जारी होने तक यह रोक लगी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह एक कमेटी बनाएगा और यदि किसान समस्या का समाधान चाहते हैं तो उन्हें उसमें पेश होना होगा।
खालिस्तान का ज़िक्र तब आया जब केंद्रीय क़ानूनों के पक्ष में एक किसान समूह ने आरोप लगाया कि प्रतिबंधित संगठन विरोध प्रदर्शन में घुस गए हैं। कृषि क़ानूनों का समर्थन करने वाले एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, 'जिन लोगों ने खालिस्तान के लिए रैलियाँ आयोजित की हैं, उन्होंने विरोध प्रदर्शनों में अपने झंडे दिखाए हैं।'
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या आरोपों की पुष्टि की जा सकती है। बाद में वेणुगोपाल ने भी कहा कि 'हमने कहा है कि खालिस्तानियों ने विरोध प्रदर्शनों में घुसपैठ की है।'
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'यदि किसी प्रतिबंधित संगठन द्वारा घुसपैठ की जा रही है, और कोई व्यक्ति रिकॉर्ड में यहाँ आरोप लगा रहा है तो आपको इसकी पुष्टि करनी होगी। आप कल तक एक हलफनामा दायर करें।'
इसके बाद एटॉर्नी जनरल ने कहा कि वह हलफनामा दायर करेंगे और आईबी रिकॉर्ड भी पेश करेंगे।
बता दें कि जब से किसानों का यह आंदोलन शुरू हुआ है तब से ही वरिष्ठ मंत्री और बीजेपी नेता किसानों के विरोध प्रदर्शन में खालिस्तानियों को शामिल होने का आरोप लगाते रहे हैं। इसके अलावा वे 'टुकड़े टुकड़े गैंग' का भी हाथ होने के आरोप लगाते रहे हैं।
नवंबर महीने में ही पूरी ट्रोल आर्मी इस काम में जुट गयी थी। किसानों के दिल्ली पहुँचने से पहले ही इसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। किसानों को खालिस्तानी बताया गया। ख़ुद हरियाणा की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ऐसा बयान दिया। सरकार के बुरी तरह घिरते देख गृह मंत्री अमित शाह ने खट्टर के उलट बयान दिया।
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम ने शाह की भी नहीं सुनी और कहा कि इस आंदोलन में खालिस्तान और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कट्टरपंथियों ने इस आंदोलन को हाईजैक कर लिया है।
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम ने सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो का हवाला दिया और कहा कि इनमें लोग खालिस्तान और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हुए सुने जा सकते हैं।
बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय सोशल मीडिया इंचार्ज प्रीति गांधी ने ऐसा ही एक वीडियो ट्वीट किया था। इस वीडियो में बताया गया कि एक शख़्स पाकिस्तान और खालिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी कर रहा है और उसके आसपास खड़े लोगों ने पाकिस्तान और खालिस्तान के झंडे पकड़े हुए हैं। अंत में यह शख़्स मोदी सरकार हाय-हाय के नारे लगाता सुनाई देता है। प्रीति गांधी ने पूछा कि क्या ये वास्तव में किसान हैं। जैसे ही पता चला कि इस वीडियो का किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है, गांधी की अच्छी-खासी फजीहत हुई और उन्होंने इसे हटा लिया।
सोशल मीडिया पर होने वाले फर्जीवाड़े का खुलासा करने के लिए पहचानी जाने वाली ऑल्ट न्यूज़ ने इस वीडियो की पड़ताल की तो पता चला कि ये वीडियो एडिट करके बनाया गया है। ऑल्ट न्यूज़ ने बताया कि ऐसा ही एक वीडियो एएनआई न्यूज़ की ओर से 6 जुलाई, 2019 को यू ट्यूब पर अपलोड किया गया था।
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