सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपराधिक अवमानना के दोषी ठहराये गये जाने-माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। गौरतलब है कि अवमानना पर सुनवाई कर रही बेंच में शामिल जस्टिस अरुण मिश्रा 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो रहे हैं। इसलिए सजा पर फ़ैसला 2 सितंबर से पहले आना तय है।
मंगलवार को करीब तीन घंटे से ज्यादा चली बहस के दौरान कई भावुक पल भी आये जिसमें बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बचाने की बात कही। हालांकि अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट से कहा कि प्रशांत भूषण को न्यायालय अवमानना अधिनियम के तहत सजा न दी जाए।
मंगलवार को ही 2009 में प्रशांत भूषण के तहलका मैगजीन को दिए इंटरव्यू के मामले में अवमानना की कार्यवाही को लेकर भी सुनवाई हुई।
‘दयालु दृष्टिकोण’ रखे बेंच: अटार्नी जनरल
अवमानना के मामले में अपना पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा, “प्रशांत भूषण ज्यूडिशिरी के भाग हैं, उन्होंने सैकड़ों की संख्या में जनहित याचिकाएं डाली हुई हैं, उन्होंने अपने बयान में जो भी बातें कहीं हैं वो न्यायाप्रणाली को बेहतर करने के लिए कही हैं। अटार्नी जनरल ने कहा, “बहुत से पूर्व जजों ने न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है, हालांकि उनकी मंशा भी न्यायिक प्रणाली में सुधार करना ही थी।”
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प्रशांत भूषण पहले भी अपने बयानों पर खेद जता चुके हैं, सीबीआई डायरेक्टर के मामले में मेरे जवाब पर उन्होंने टिप्पणी की थी, मेरी तरफ से भी अवमानना का केस दायर किया गया लेकिन प्रशांत भूषण ने जब खेद जता दिया तो मैंने याचिका वापस ले ली।
के.के. वेणुगोपाल, अटार्नी जनरल
...मामला खत्म कर दे कोर्ट
अटार्नी जनरल ने कहा, “ हालांकि खेद जताने के लिए उनकी तरफ से राजीव धवन ही बोल सकते हैं, लेकिन अरुंधती राय के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा था कि हमारे कंधे इस तरह के बयानों का बोझ उठाने के काफी मजबूत हैं। अगर प्रशांत भूषण खेद जता देते हैं और दाखिल हलफनामे को वापस ले लेते हैं तो सुप्रीम कोर्ट को ये मामला यहीं खत्म कर देना चाहिए।”
कोर्ट मित्र हैं प्रशांत भूषण
प्रशांत भूषण की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से कहा, “कोर्ट जब प्रशांत भूषण को सजा दे तब कोर्ट को ये याद रखना चाहिए कि ये ही दोषी जनहित के विभिन्न मामलों के लिए कोर्ट मित्र (Amicus) बना और जनहित के मामलों को अदालत तक लेकर आया जैसा कि खुद अटार्नी जनरल ने कहा। मैंने खुद 1000 आर्टिकल लिखे हैं जिनमें करीब 900 सुप्रीम कोर्ट से ही संबंधित हैं, जिनमें मैंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट में एक मिडिल क्लॉस टेम्परेचर है। क्या ये भी अवमानना के अंतर्गत आयेगा?’’
राजीव धवन ने कहा, “मुझे याद है कि जस्टिस अरुण मिश्रा कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा था कि जज भ्रष्टाचारी हैं। लेकिन इस बयान पर विचार करते हुए आपने ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री पद का भी ध्यान रखा था। प्रशांत भूषण को जिस मामले में दोषी ठहराया गया है उसके आदेश में आधा सच और विरोधाभास है।’’
धवन कहते हैं, “कानून के शिकंजे से बचने के लिए माफी नहीं मांगी जा सकती। माफी के लिए ईमानदार होना पड़ता है। कल अगर मुझे अवमानना के लिए दोषी ठहराया जाता है (मैंने कई अवमानना वाले काम किए हैं), तो क्या आपको उम्मीद है कि मैं बचाव नहीं करूंगा? आप प्रशांत भूषण के जवाब पर सवाल नहीं उठा सकते। वह कहते हैं कि वह अदालत के एक अधिकारी हैं और उन्होंने अपनी ईमानदारी पर विश्वास व्यक्त किया है।"
भूषण के पहले ट्वीट के संबंध में धवन कहते हैं, ‘‘भूषण यह नहीं कह रहे हैं कि अदालत ने काम नहीं किया। वह मामलों की प्राथमिकता पर टिप्पणी कर रहे हैं।’’ धवन ने कहा कि एक गंभीर व्याख्या "माफी" शब्द के व्यापक संदर्भ में आएगी।
सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि स्वत: संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसला दिया है उसे वो खुद वापस ले। बयान की वापसी का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि ये प्रशांत भूषण का खुद का बचाव है।
भूषण को शहीद न बनाये कोर्ट: धवन
धवन ने आगे कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट अवमानना के मामले में सजा देता है तो कुछ आर्टिकल छपेंगे जिनमें कहा जाएगा कि वो शहीद हैं, जबकि कुछ आर्टिकल ये कहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने सजा देकर सही फ़ैसला किया। इससे दोनों तरफ से टकराव नहीं रुकने वाला। सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को सजा देकर शहीद क्यों बनाना चाहता है? जबकि खुद प्रशांत भूषण शहीद नहीं बनना चाहते।’’कोर्ट कब तक आलोचनाएं सहन करेगा?
प्रशांत भूषण के रवैये पर नाराजगी जताते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “प्रशांत भूषण के जवाब और ट्वीट पर उनके तर्कों को पढ़कर बहुत दुख हुआ। एक शख्स जिसने 30 साल तक वकालत की है उसका रवैया बहुत दुखद है। राजनेता और कोर्ट के अधिकारी (officer of the court) दोनों में बहुत फर्क होता है, हर बात के लिए आप अगर प्रेस के पास जाते हैं तो आप अपने कारणों के अलावा अलग बातों के लिए ज्यादा मशहूर हो जाते हैं।’’
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प्रशांत भूषण जैसे कद के वकील का सोशल मीडिया में ट्वीट मायने रखता है, ये जनता के बीच प्रभाव डालता है। आप न्यायिक व्यवस्था का अंग हैं, आपकी वैसी ही गरिमा है जैसी एक न्यायिक अधिकारी की होती है, अगर आप इसे ऐसे ही नुकसान पहुंचाते रहेंगे तो जनता का विश्वास सिस्टम से खत्म हो जाएगा।
अरुण मिश्रा, जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट
स्वस्थ आलोचना स्वीकार्य
जस्टिस मिश्रा ने कहा, “हम स्वस्थ आलोचना को स्वीकार करते हैं लेकिन आलोचना करने के लिए हम हमेशा प्रेस के पास नहीं जाते। एक जज होने के नाते मैं भी प्रेस के पास नहीं गया। हम सबको ये नैतिकता बचा कर रखनी है। ऐसा नहीं है कि हमने स्वस्थ आलोचना पर रोक लगा रखी है, सुप्रीम कोर्ट की खूब आलोचना होती है लेकिन क्या हमने सब पर अवमानना की कार्यवाही की। प्रशांत भूषण का एक मामला तो 11 साल से लंबित पड़ा हुआ है, क्या हमने कोई एक्शन लिया?’’
जस्टिस मिश्रा ने कहा, “अगर न्यायिक अधिकारी चुप हो जाएं तो उनका बचाव कौन करेगा? केवल बार ही बचाव करेगा, अटार्नी जनरल बचाव करेंगे, कब तक न्यायिक प्रणाली को ये आलोचना सहनी पड़ेगी?’’
‘क्षमा मांगने में क्या दिक्कत है’
जस्टिस मिश्रा ने अंत में कहा, ‘‘क्षमा शब्द का प्रयोग करने में क्या परेशानी है, क्षमा मांगने में क्या दिक्कत है, क्षमा एक चमत्कारी शब्द है जो तमाम बातों को भर देता है। अगर आप क्षमा मांग लेते हैं तो आप भी महात्मा गांधी के समकक्ष खड़े हो जाते हैं, अगर गलती की हो तो क्षमा मांगने से पीछे नहीं हटना चाहिए।’’
तहलका मामले में नई बेंच करेगी सुनवाई
इससे पहले साल 2009 में तहलका पत्रिका को दिए गये इंटरव्यू को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई करते हुए मामले को नई बेंच के लिए सुनवाई को भेज दिया। ये बेंच ही तय करेगी कि क्या मामला संवैधानिक पीठ में जाना चाहिए या नहीं। इस मामले में सुनवाई शुरू होते ही प्रशांत भूषण की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अवमानना मामले में संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 के तहत स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही करने की जो शक्ति मिली है क्या वो संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) से अलग है। इसके साथ ही राजीव धवन ने 10 संवैधानिक प्रश्नों की एक सूची भी सुप्रीम कोर्ट को सौंपी। इस मामले में अगली बेंच 10 सितंबर को सुनवाई करेगी।
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