सरकार के किसी फ़ैसले से असहमत होना या उसकी आलोचना करना लोगों का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने ही गुरुवार को यह फ़ैसला दिया है। इसने असहमति के अधिकार की पैरवी करते हुए कहा कि हर आलोचना अपराध नहीं है और अगर ऐसा सोचा गया तो लोकतंत्र बच नहीं पाएगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस को संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में संवेदनशील होना चाहिए।
हर आलोचना को अपराध माना गया तो लोकतंत्र बच नहीं पाएगा: SC
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- 8 Mar, 2024
जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को ख़त्म किए जाने के फ़ैसले की आलोचना करने पर क्या किसी पर मुक़दमा हो सकता है? या फिर पड़ोसी देश पाकिस्तान को उसके स्वतंत्रता दिवस पर पाकिस्तानियों को बधाई देना क्या गुनाह है? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला गुरुवार को तब दिया जब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आलोचना करने वाले एक प्रोफेसर का मामला उसके सामने पहुँचा। प्रोफेसर के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला तब दर्ज किया गया था जब उन्होंने व्हाट्सएप स्टेटस में अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने की आलोचना करते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए 'काला दिन' बताया था। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देना) के तहत दर्ज मामला दर्ज किया गया था।