नोएडा के जिस सुपरटेक के दोनों टावरों के निर्माण में क़रीब 9 साल लगे वे सिर्फ़ 9 सेकंड में ध्वस्त हो जाएँगे। भीड़भाड़ वाली जगह पर होने के बावजूद आसपास कुछ नुक़सान भी नहीं होगा। चौंकिए नहीं। यह संभव है। यह सब होगा तकनीक से। आख़िर वह तकनीक क्या है और यह कैसे संभव होगा?
इस सवाल का जवाब गगनचुंबी इमारतों को ढहाने में महारत हासिल करने वाले विशेषज्ञ बेहतर ढंग से दे सकते हैं। लेकिन वह कौन सा तरीका है और इसे कैसे अंजाम दिया जाएगा, यह जानने से पहले यह जान लें कि सुपरटेक के दोनों टावरों का यह पूरा मामला क्या है और इसे क्यों ढहाया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त महीने के आख़िर में आदेश दिया था कि नोएडा में सुपरटेक के दो टावर को ध्वस्त कर दिया जाए। ये दोनों टावरों में 40-40 मंजिलें प्रस्तावित थीं। इनमें 32-32 मंजिलें बन चुकी हैं। फ़्लैट बनाने का काम करने वाली सुपरटेक ने इन दोनों टावर में 900 से ज़्यादा फ़्लैट बनाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने टावरों को ध्वस्त करने का फ़ैसला निर्माण से संबंधित क़ानूनों के उल्लंघन पर दिया है। इन टावरों को 22 मई को ढहा दिया जाना है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को देखते हुए नोएडा अथॉरिटी और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, रुड़की द्वारा चुनी गई कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी जेट डिमोलिशन के सहयोग से टावरों को ध्वस्त करेगी। तो क्या इसे ढहाना इतना आसान है?
इन टावरों के आसपास कई कॉम्पलेक्स हैं, 60 फीट वाली मुख्य सड़क है, पार्क है और पेड़ पौधे भी हैं। इन टावरों के सबसे क़रीब सिर्फ़ 9 मीटर की दूरी पर ही दूसरा कॉम्पलेक्स है। इतनी भीड़भाड़ वाली जगह पर क्या बिना किसी नुक़सान के इसको ढहाना संभव है?
इमारतों को ढहाने में विशेषज्ञता रखने वाले लोग मानते हैं कि बिल्कुल संभव है। दुनिया भर में ऐसी इमारतों को ढहाया गया है।
वैसे तो ऐसी इमारतों को ढहाने के लिए कई तकनीक हैं, लेकिन मौजूदा समय में इसमें सबसे ज़्यादा प्रचलित इंप्लोजन यानी अंतर्मुखी विस्फोट का तरीक़ा है। इसी तकनीक से सुपरटेक के दोनों टावर ध्वस्त किए जाएंगे।
इंप्लोजन
घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में इमारतों के विध्वंस के लिए सबसे आम तरीक़ा इमारत में कई प्वाइंट पर विस्फोटक लगाने का है। इसमें दीवारों में छेद करके छोटे-छोटे विस्फोटक लगाए जाते हैं। सावधानी से किए गए एक साथ विस्फोट के बाद इमारत का मलबा इमारत के अंदरुनी हिस्से में ही गिरता है। कुछ मिनटों या सेकंडों में पूरी इमारत परिसर में ही ध्वस्त हो जाती है।
- इसके लिए काफ़ी तैयारी की ज़रूरत होती है। इसमें महीनों लग सकते हैं। विशेषज्ञों द्वारा टावर की संरचना और उसके लेआउट का सर्वे किया जाता है।
- हर मंजिल पर विस्फोटक लगाने की योजना बनाई जाती है। विस्फोटक ऐसी जगहों पर लगाए जाते हैं जिससे टावर को मज़बूती देने वाले खंभों को ध्वस्त किया जा सके।
- 50-100 मीटर के दायरे में पूरी आबादी को खाली करा लिया जाता है जिससे किसी अनपेक्षित घटना होने पर जान-माल का नुक़सान नहीं हो।
- सभी विस्फोटकों को एक साथ धमाका किया जाता है। विस्फोट अंदर की ओर होता है और मलबा टावर परिसर में ही गिरता है। बाद में मलबे को हटा लिया जाता है।
दोनों टावर ढहाने के लिए क्या है योजना?
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एडिफिस इंजीनियरिंग के पार्टनर उत्कर्ष मेहता ने कहा है कि विस्फोट में क़रीब 9 सेकेंड का समय लगेगा। दोनों टावर लगभग एक साथ गिरेंगे। छोटे टावर के कुछ मिलीसेकंड बाद लंबा टावर ढहेगा। टावरों के स्तंभों को तार जाल और भू-टेक्सटाइल कपड़े की परतों के साथ कवर किया जाएगा ताकि इमारत के फटने पर कंक्रीट के मलबे को बिखरने से रोका जा सके।
रिपोर्ट के अनुसार विस्फोटकों को रखने के लिए स्तंभों में छेद किए जाएंगे। मेहता ने कहा कि लगभग 2,500 किलोग्राम से 4,000 किलोग्राम विस्फोटक की आवश्यकता हो सकती है।
हालाँकि, मलबा टावर परिसर में ही गिरेगा, लेकिन एहतियात के तौर पर आसपास के क्षेत्र को खाली करा लिया जाएगा। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, नोएडा सेक्टर 93ए स्थित टावरों के क़रीब रहने वाले लगभग 1,500 परिवारों को 22 मई को विस्फोट के दौरान क़रीब पांच घंटे के लिए उनको घरों से बाहर निकाल दिया जाएगा।
एडिफिस इंजीनियरिंग द्वारा साझा की गई विध्वंस योजना के अनुसार, साइट के क़रीब नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे का एक हिस्सा भी एक घंटे के लिए यातायात के लिए बंद रहेगा। उस दिन बड़ी संख्या में सुरक्षा कर्मियों को क्षेत्र में तैनात किया जाएगा।
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