हेमंत सोरेन
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कल्पना सोरेन
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पुलिस ने पोट्टम की गिरफ्तारी की वजह साफ नहीं की। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने पांच मामलों के बारे में बताया है। इनमें चार मिरतुर से और एक बीजापुर कोतवाली से। अब तक, पुलिस ने उन पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) जैसे कड़े कानून में कार्रवाई की। लेकिन अदालत में उनका पुलिस रिमांड नहीं मांगा। उसकी गिरफ्तारी पर पुलिस ने दावा किया कि उसके खिलाफ 12 मामले हैं। उनमें से किसी भी मामले की जानकारी न तो पोट्टम को है और न ही उनके मददगार वकीलों को है।
बीजापुर पुलिस ने जब पोट्टम को घर से खींचकर ले जाने लगी तो पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की उनकी सहयोगी श्रेया खेमानी वहां पहुंच चुकी थी। श्रेया ने कहा कि मैंने बार-बार पुलिस वालों से गिरफ्तारी की वजह पूछी लेकिन पुलिस ने गिरफ्तारी का कारण बताने से इनकार कर दिया। जब उनसे वारंट या नोटिस मांगा गया तो डीएसपी गरिमा दादर ने अपने साथ लाई गई फाइल की ओर इशारा कर दिया। श्रेया खेमानी ने खुद देखा कि पुलिस सुनीता पोट्टम को जिस वाहन में ले गई, उस पर नंबर प्लेट तक नहीं थी।
सुनीता पोट्टम पहले भी पुलिस के निशाने पर रही हैं। 2015 में बीजापुर जिले में आदिवासियों की हत्याएं बढ़ रही थीं, पोट्टम के अपने गांव में, एक युवक की हत्या कर दी गई। एक युवा मां के साथ रेप किया गया और तीन नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न किया गया। पोट्टम ने इस अत्याचार के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। मामले को अदालत में ले जाने के लिए उन्हें और एक अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता, मुन्नी पोट्टम पर राज्य पुलिस और सुरक्षा बलों ने कार्रवाई शुरू कर दी और उन्हें तरह तरह से परेशान किया गया।
1 जनवरी 2024 को जब दक्षिणी छत्तीसगढ़ जिले के आदिवासी गांव मुतवेंडी में पुलिस गोलीबारी में मारे गए छह लोगों में से एक छह महीने का बच्चा भी था, पोट्टम ने गांव वालों पर अंधाधुंध गोलीबारी के खिलाफ आवाज उठाई थी। पुलिस से तब से उनकी घेराबंदी की कोशिश कर रही थी। 9 फरवरी को, जब सुनीता पोट्टम बीजापुर के गंगालूर क्षेत्र में हादसे का शिकार हुए ग्रामीणों की मदद के लिए बीजापुर जिला अस्पताल में आईं तो मुख्य सड़क पर पुलिसकर्मियों ने उनका पीछा किया। उन्हें जबरन पुलिस बाइक पर साथ ले जाने की कोशिश की गई। .
छत्तीसगढ़ में आदिवासी ग्रामीणों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियाँ बहुत आम हैं। ये गिरफ़्तारियाँ कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए हुए बिना की जाती हैं। पोट्टम के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। सुनीता पोट्टम 17 साल की छोटी उम्र से अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं। आदिवासी इलाकों में इधर लड़कियों में काफी जागरुकता आई है और वे अत्याचार के खिलाफ खड़ी हो रही हैं।
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