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न्यायपालिका सरकार की बंधक नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूरों की वापसी पर कहा

सु्प्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूरों के अपने गृह राज्य लौटने के मुद्दे पर कहा है कि न्यायपालिका सरकार के पास बंधक नहीं है। 
मशहूर वकील प्रशांत भूषण की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एन. वी. रमण, जस्टिस संजय कृष्ण और जस्टिस बी. आर. गवई के खंडपीठ ने यह कहा। खंडपीठ ने कहा, 'न्यायपालिका पर आपको भरोसा नहीं है। यह संस्थान सरकार की बंधक नहीं है।'
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प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका में कहा है कि सरकार ने प्रवासी मज़दूरों की तरफ से आँखें मूंद ली हैं, उनके मौलिक अधिकारों का पालन नहीं किया जा रहा है।
सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को लेकर चिंतित है और उनकी मदद के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। 

केंद्र को नोटिस

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस देकर कहा कि वह एक सप्ताह में याचिका में कही गई बात का जवाब दे। इस याचिका में अदालत से गुहार की गई है कि वह अधिकारियों को आदेश दे कि जगह-जगह फंसे मज़दूरों को अपने घर लौटने दें। 

भूषण ने अपनी याचिका में कहा है कि लॉकडाउन की वजह से मज़दूरों की स्थिति बहुत खराब है। इनमें से 90 प्रतिशत लोगों को राशन या वेतन नहीं मिला है। वे अपने घर लौटने के लिए ब्याकुल हैं, पर उन्हें अपने घर लौटने नहीं दिया जा रहा है। 

बता दें कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने कहा है कि वे अपने-अपने मज़दूरों को निकाल कर ले जाएंगी। 

बिहार सरकार ने इसका विरोध किया है। उसका कहना है कि यह लॉकडाउन का उल्लंघन है, आपदा प्रबंधन अधिनियम के नियमों के उलट है, यह ग़ैरक़ानूनी है।

इसके पहले गृह मंत्रालय ने 19 अप्रैल को दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि मज़दूर राज्य के अंदर एक जगह से दूसरी जगह जा सकते हैं। दिशा निर्देश में राज्य सरकारों से कहा गया था कि वह इन मज़दूरों के लिए खाने पीने और परिवहन का इंतजाम करे। 

 

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क़मर वहीद नक़वी
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