पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों में से एक एजी पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है। वह क़रीब 30 साल से सलाखों के पीछे है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि राज्यपाल, राज्य मंत्रिमंडल की रिहाई की सिफारिश को ऐसे नहीं लटकाए रह सकते हैं। इस फ़ैसले से मामले के अन्य छह दोषियों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। उन दोषियों में नलिनी श्रीहरन और उसके पति मुरुगन शामिल हैं।
पेरारिवलन ने 2018 में तमिलनाडु सरकार द्वारा उसे सजा में छूट देने की सिफारिश के बावजूद उसकी रिहाई में देरी से नाराज होकर अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस मामले में एक कानूनी विवाद देखा गया कि माफी याचिका पर फैसला करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी कौन है- राष्ट्रपति या राज्यपाल।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की पीठ ने कहा कि तमिलनाडु राज्य मंत्रिमंडल ने प्रासंगिक विचारों पर पेरारिवलन को छूट देने का निर्णय लिया। पीठ ने आगे कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में अत्यधिक देरी न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है। पीठ ने माना कि हत्या के मामलों से संबंधित क्षमा/छूट याचिकाओं में राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए राज्य सरकार अपने अधिकार में है।
हत्याकांड के समय पेरारिवलन 19 साल का था। उस पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी LTTE के शिवरासन के लिए 9-वोल्ट की दो बैटरी खरीदने का आरोप था। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के लिए बम में बैटरियों का इस्तेमाल किया गया था। शिवरासन हत्या का मास्टरमाइंड था।
पेरारिवलन को 1998 में एक आतंकवाद विरोधी अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। अगले साल सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा लेकिन 2014 में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया। इस साल मार्च में शीर्ष अदालत ने उसे जमानत दे दी थी।
इसके बाद पेरारिवलन ने जेल से जल्द रिहाई की मांग की थी। केंद्र ने पेरारिवलन की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने मामले को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेज दिया है, जिन्होंने अभी इस पर फैसला नहीं किया है।
शीर्ष अदालत ने मामले में देरी और राज्यपाल की कार्रवाई पर सवाल उठाया था। पिछले हफ्ते सुनवाई में, केंद्र ने कहा था कि दया के मामलों में केवल राष्ट्रपति के पास विशेष शक्तियां हैं। इस पर अदालत ने कहा कि इसका मतलब यह होगा कि इन सभी वर्षों में राज्यपालों द्वारा दी गई दया असंवैधानिक होगी।
पूर्वप्रधान मंत्री राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली में एक महिला आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या कर दी गई थी। इस मामले में सात लोगों को दोषी ठहराया गया था। हालांकि सभी को मौत की सजा सुनाई गई थी। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दया याचिका पर निर्णय लेने में राष्ट्रपति द्वारा अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
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