सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कृषि पैनल के सदस्य अनिल घनवत ने आज तीन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के प्रधानमंत्री मोदी के फ़ैसले की आलोचना की है। उन्होंने इस फ़ैसले को पीछे जाने वाला निर्णय बताया है क्योंकि प्रधानमंत्री ने 'किसानों की बेहतरी पर राजनीति को चुना'। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ चुनाव जीतने के लिए किया गया।
कमेटी के एक सदस्य अनिल घनवत शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं। उन्होंने सितंबर महीने में ही तीन कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों के मुद्दों के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को ख़त लिखा था। उन्होंने रिपोर्ट को जारी करने के साथ ही इसको सरकार को भेजने का भी आग्रह किया था। कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों व सरकार के बीच जारी गतिरोध को ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में ही कमेटी का गठन किया था। इस साल मार्च में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी थी। कमेटी ने क्या सुझाव दिया है, यह अभी सामने नहीं आया है।
इसी बीच मोदी सरकार ने आख़िरकार इन क़ानूनों को वापस लेने का फ़ैसला किया। कुछ ही महीनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित कई राज्यों में होने वाले चुनावों से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा की है। हालाँकि आज की घोषणा में मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए ये क़ानून बनाए थे और इनकी मांग कई सालों से की जा रही थी। लेकिन किसानों का एक वर्ग लगातार इसका विरोध कर रहा था, इसे देखते हुए ही सरकार इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में इन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की प्रक्रिया को पूरा कर देगी।
किसान इन तीन कृषि क़ानूनों का विरोध क़रीब एक साल पहले से ही कर रहे हैं। सरकार की सख्ती के बाद भी किसान अहिंसक तरीक़े से लगातार डटे हैं। किसान बीजेपी नेताओं का भी विरोध कर रहे हैं। कई राज्यों में चुनाव से पहले किसानों ने यह भी अभियान चलाया था कि 'जब तक कृषि क़ानून वापस नहीं हो तब तक लोग बीजेपी को वोट नहीं दें'। माना जाता है कि पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्यों में इसका असर भी हुआ भी। हाल के कई राज्यों में उपचुनाव में बीजेपी को झटका लगा है।
मोदी के फ़ैसले की बीच अब घनवत ने पीटीआई से कहा,
हमारे पैनल ने तीन कृषि कानूनों पर कई सुधार और समाधान पेश किए थे, लेकिन गतिरोध को हल करने के लिए इसका इस्तेमाल करने के बजाय, पीएम मोदी और बीजेपी ने पीछे हटना चुना। वे सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं और कुछ नहीं।
घनवत ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट में हमारी सिफारिशें प्रस्तुत करने के बावजूद अब ऐसा लगता है कि इस सरकार ने इसे पढ़ा भी नहीं है। कृषि क़ानूनों को रद्द करने का निर्णय विशुद्ध रूप से राजनीतिक है, जिसका उद्देश्य आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव में जीत हासिल करना है।'
उन्होंने कहा कि कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के निर्णय ने अब कृषि और इसके विपणन क्षेत्र में सभी प्रकार के सुधारों के दरवाजे बंद कर दिए हैं। उन्होंने दावा किया कि पार्टी के राजनीतिक हितों के लिए किसानों के हितों की बलि दी गई है।
बता दें कि इस साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के सदस्यों पर विवाद हुआ था। यह विवाद कितना ज़बरदस्त हुआ था इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि इसके एक सदस्य कमेटी से अलग हो गए थे।
कमेटी में शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत के अलावा इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट में दक्षिण एशिया में पूर्व निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री और कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट ऐंड प्राइस के पूर्व चेयरमैन अशोक गुलाटी और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान शामिल थे। लेकिन भूपिंदर सिंह मान ने ख़ुद को उस कमेटी से अलग कर लिया था।
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