देह व्यापार करने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। इसने एक अहम आदेश में पुलिस से कहा है कि देह व्यापार क़ानूनन वैध है और उसे अपने मन से देह व्यापार करने वालों के ख़िलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा कि उनके मामलों में दखल नहीं दिया जाना चाहिए और उनको परेशान करना बंद होना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि देह व्यापार एक पेशा है और ऐसा करने वाले क़ानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं।
कोर्ट ने 19 मई को आदेश दिया है कि देह व्यापार करने वालों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, दंडित नहीं किया जाना चाहिए, या वेश्यालय में छापेमारी में उनका उत्पीड़न नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि स्वैच्छिक देह व्यापार अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना ग़ैर-क़ानूनी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब यह साफ़ हो जाए कि देह व्यापार करने वाली वयस्क है और सहमति से वह काम कर रही है तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने देह व्यापार करने वालों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई निर्देश जारी किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है
- देह व्यापार करने वाली क़ानून के समान संरक्षण की हकदार हैं। आपराधिक क़ानून सभी मामलों में उम्र और सहमति के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
- जब यह साफ़ हो जाए कि देह व्यापार करने वाली वयस्क है और सहमति से काम कर रही है तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए।
- यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि कोई भी पेशे के बावजूद, इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है।
- देह व्यापार करने वाली के बच्चे को सिर्फ इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है।
- यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या देह व्यापार करने वालों के साथ रहता पाया जाता है, तो यह ही नहीं माना जाना चाहिए कि बच्चे की तस्करी की गई थी।
अदालत ने पुलिस को यह भी आदेश दिया कि वह शिकायत दर्ज कराने वाली देह व्यापार करने वाली के साथ भेदभाव न करे। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा, 'यह देखा गया है कि देह व्यापार करने वालों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है। यह ऐसा है जैसे वे एक ऐसे वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है।'
अदालत ने कहा कि मीडिया को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न करें, चाहे वह पीड़ित हों या आरोपी हों और ऐसी कोई तसवीर प्रकाशित या प्रसारित न करें जिससे ऐसी पहचान उजागर होती हो। न्यायमूर्ति राव का मत था कि संबंधित अधिकारी देह व्यापार करने वाली को उनकी इच्छा के विरुद्ध सुधार/आश्रय गृह में रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
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